Saturday, 30 January 2016

स्वामी रामानन्दाचार्य

           स्वामी रामानन्दाचार्य का जन्म विक्रम संवत् 1356 मे माघ मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को प्रयाग ( इलाहाबाद ) मे एक ब्राह्मण परिवार मे हुआ था।उक्त तिथि को चित्रा नक्षत्र ; सिद्धियोग ; कुम्भ लग्न और गुरुवार का दिन था।इनके पिता का नाम पुण्यसदन एवं माता का नाम सुशीला देवी था।
बचपन --
---------      इनके जन्मकालीन ग्रहस्थिति को देखकर एक ज्योतिर्विद ने कहा कि इस बच्चे को तीन वर्ष को आयु तक बाहर निकलना शुभ नही है।इसे केवल दूध पिलाया जाय ; अन्न न दिया जाय।माता-पिता ने उसी ढंग से उनका पालन-पोषण किया।चौथे वर्ष अन्नप्राशन के समय इनके समक्ष अनेक व्यञ्जन रखे गये।इन्होने अपनी इच्छानुसार केवल खीर का प्राशन किया।अतः दीर्घकाल तक वे केवल खीर ही खाते रहे।
शिक्षा-दीक्षा ---
----------------   
           रामानन्द जी बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे।इनकी स्मरण-शक्ति असाधारण थी।इन पिता जी जिन ग्रंथों का पाठ करते थे; वे सभी ग्रन्थ इन्हे कण्ठस्थ हो जाते थे।इसलिए बचपन मे ही इन्हे अनेक ग्रन्थ कण्ठस्थ हो गये थे।आठवें वर्ष उपनयन के समय जब काशी-गमन की औपचारिकता की गयी ।तब वे वास्तव मे काशी की ओर चल पड़े।माता-पिता के मनाने पर भी वापस नही लौटे।अतः माता-पिता भी उनके साथ जाकर काशी मे भस गये।बच्चे ने वहीं पर बारह वर्षों तक विद्याध्ययन किया।बाद मे राघवानन्द जी से दीक्षा ग्रहण कर पञ्चगंगा घाट पर तप करने लगे।
जनकल्याण ---
---------------
            धीरे-धीरे इनकी ख्याति बढ़ती गयी।उनके दर्शन के लिए जनसाधारण के साथ-साथ बड़े बड़े सन्त महात्मा योगी सन्यासी और विद्वान भी आने लगे।इनकी शंखध्वनि मे अद्भुत शक्ति थी।जिनके कानों मे यह ध्वनि पहुँच जाती थी; उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते थे।जब भीड़ बढ़ने लगी तब उन्होने केवल चार बार शंखध्वनि करने का नियम बना लिया।इससे असंख्य लोगों का कल्याण हुआ।
सम्प्रदाय एवं शिष्य --
-------------------------
           रामानन्दाचार्य जी अपने युग के महान् सन्त ; समाजसुधारक एवं आध्यात्मिक आचार्य थे।वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अनन्य भक्त थे।उन्होने जिस सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया ; उसे श्रीरामायत अथवा श्रीरामानन्दी वैष्णव सम्प्रदाय कहा जाता है।उनकी सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि उन्होने सभी जातियों एवं सम्प्रदायों के लोगों को दीक्षा दी थी।
          उनके शिष्यों मे कबीरदास; रैदास ; अनन्तानन्द ; सुखानन्द ; सुरसुरानन्द ; पद्मावती ; नरहरयानन्द ; पीपा ; भावानन्द ; धन्ना ; सेन और सुरसुरानन्द की पत्नी प्रमुख हैं।इन्हें द्वादश महाभागवत कहा जाता है।
रचनायें ---
---------
         इनकी रचनाओं मे वैष्णवमताब्ज भास्कर ; श्रीरामार्चन पद्धति ; रामरक्षास्तोत्र ; सिद्धान्त-पटल ; ज्ञानलीला ; ज्ञानतिलक ; योगचिन्तामणि और सतनामीपन्थ प्रमुख हैं।
अन्त --
-------
         इनके अन्त के विषय मे एक अद्भुत आख्यान उपलब्ध है।इन्होने अपने शिष्यों से कहा कि कल रामनवमी है।मै अकेला ही अयोध्या जाऊँगा।यदि वहाँ से लौट न सकूँ तो आप लोग मुझे क्षमा कर देना।ऐसा कहकर रात्रि मे विश्राम करने चले गये।दूसरे दिन देखा गया तो आचार्य जी अन्तर्धान हो गये थे।

No comments:

Post a Comment