पुत्रदा-एकादशी-व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।अपने भक्तों को पुत्र -प्रदायक होने के कारण इसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।
कथा ---
प्राचीन काल मे भद्रावती नगरी मे सुकेतुमान नामक राजा राज्य करता था।उसकी रानी का नाम चम्पा था।दोनो बहुत धार्मिक थे किन्तु उनके पुत्र नहीं था।इसलिए वे सदैव दुःखी रहते थे।एक दिन उदास-मन राजा अपना राजपाट छोड़कर वन मे चले गये।वहाँ प्यास लगने पर वे जल ढूँढने लगे।मार्ग मे एक जलाशय मिला।उसके तट पर अनेक मुनि विराजमान थे।राजा ने उन्हें प्रणाम कर उनका परिचय पूछा।मुनियों ने बतलाया कि हम लोग विश्वदेव हैं।यहाँ पुत्रदा एकादशी के उपलक्ष्य मे पवित्र स्नान करने आये हैं।राजा ने विनम्रता-पूर्वक कहा कि मै पुत्रहीन हूँ।मुझे पुत्र - प्राप्ति का कोई उपाय बतलाने की कृपा करें।विश्वदेवों ने उन्हें उस दिन की पुत्रदा एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया।राजा ने उन्हीं लोगों के साथ व्रत ; रात्रि-जागरण एवं द्वादशी को पारणा किया।
इसके बाद राजा अपने घर वापस लौट आये।कालान्तर मे उन्हें महारानी चम्पा के गर्भ से एक सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई।
विधि ---
व्रती संकल्प पूर्वक दिन भर विष्णु -पूजन एवं उपवास करे।रात्रि जागरण के बाद द्वादशी मे पारणा करे।
माहात्म्य --
इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पुत्र-प्राप्ति अवश्य होती है।वह सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद अन्त मे विष्णु लोक की प्राप्ति करता है।
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