वसन्त पञ्चमी का पर्व माघ शुक्ल पञ्चमी को मनाया जाता है।इस दिन सरस्वती का जन्म एवं वसन्त का आगमन माना जाता है।
कथा ---
सम्पूर्ण जगत् की कारणभूत महालक्ष्मी ही विशुद्ध सत्त्वगुण के अंश से महासरस्वती के रूप मे प्रकट होती हैं।इन्हें वाणी ; विद्या एवं संगीतशास्त्र की अधिष्ठात्रि देवी माना जाता है।इन्हीं से ताल ; स्वर ; लय आदि का प्रादुर्भाव हुआ है।सप्तस्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है।इसीलिए इन्हें सरस्वती कहा जाता है।
भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की संरचना करने के लिए जब तपस्या किया तब उनका शरीर दो भागों मे विभक्त हो गया।उनमे से आधा भाग स्त्री के रूप मे और आधा भाग पुरुष के रूप मे प्रकट हुआ।वह स्त्रीरूप ही सरस्वती या शतरूपा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।अपने शरीर से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा जी ने उन्हें पुत्रीरूप मे स्वीकार किया।
देवी भागवत के अनुसार सरस्वती का आविर्भाव राधा जी के मुख से हुआ था।उस समय उनका पूजन सर्वप्रथम श्री कृष्ण ने किया था।साथ ही यह वरदान दिया कि देव दानव मानव सभी लोग माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करेंगे।इसी आधार पर आज भी इस तिथि को सरस्वती-पूजन होता है।
विधि --
व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प ले।शुभासन पर पूर्वाभिमुख बैठकर गन्ध अक्षत आदि से माता सरस्वती का विधिवत पूजन करे।मन्त्र - पुष्पाञ्जलि आदि समर्पित कर प्रार्थना करे --
या कुन्देन्दुतुषारहार-धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्ड-मण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत् पूजा करनी चाहिए।फिर अपने समक्ष वेदी पर वस्त्र बिछाकर चावल से अष्टदल कमल बनाये।उसके अग्रभाग मे गणेश जी का पूजन करे।फिर कमलदल के पश्चिम मे जौ गेहूँ की बालियाँ रखकर उसमे वसन्त की स्थापना कर रति एवं कामदेव का पूजन करना चाहिए।
माहात्म्य --
वसन्त पञ्चमी को इन देवी-देवताओं का पूजन करने से मनुष्य को नाना प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।सरस्वती जी वाणी विद्या एवं बुद्धि की अधिष्ठात्रि देवी हैं।अतः इस अवसर पर इनका पूजन करने से मनुष्य बुद्धिमान ; विद्वान एवं गुणवान बन जाता है।विशेषकर विद्यार्थियों को इस दिन सरस्वती-पूजन अवश्य करना चाहिए।
Sunday, 24 January 2016
वसन्त पञ्चमी
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