Saturday, 23 January 2016

मन्दारषष्ठी-व्रत

           मन्दारषष्ठी-व्रत माघ शुक्ल षष्ठी को किया जाता है।इसमे मन्दार-पुष्पों से सूर्य-पूजन किया जाता है।इसीलिए इसको मन्दारषष्ठी कहा जाता है।
कथा --
           भविष्यपुराण मे इस व्रत का वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था।परन्तु मत्स्यपुराण मे इसी को मन्दार-सप्तमी व्रत के रूप मे वर्णित किया गया है।
विधि ---
           व्रती माघ शुक्ल पञ्चमी को स्वल्पाहार एवं मन्दार-पुष्प-भक्षण कर रात्रि-शयन करे।दूसरे दिन स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प पूर्वक ताम्रपात्र मे काले तिलों से अष्टदल कमल की रचना करे।उस पर स्वर्ण - निर्मित सूर्य की ऐसी प्रतिमा स्थापित करे ; जो हाथ मे कमल-पुष्प लिए हुए हों।फिर अष्टदल कमल के दलों मे पूर्वादि क्रम से ऊँ भास्कराय नमः ; ऊँ सूर्याय नमः ; ऊँ अर्काय नमः ; ऊँ अर्यमणे नमः ; ऊँ वसुधात्रे नमः ; ऊँ चण्डभानवे नमः ; ऊँ पूष्णे नमः ; ऊँ आनन्दाय नमः से तथा मध्य मे ऊँ सर्वात्मने नमः से सूर्यदेव का आवाहन करे।फिर सभी की एक- एक स्वर्ण-मन्दारपुष्प ; गन्ध ; अक्षत आदि से पूजन करे।दिन भर उपवास करके दूसरे दिन पारणा करे।
           इसी प्रकार वर्ष पर्यन्त प्रत्येक शुक्ला षष्ठी को व्रत करे।वर्षान्त मे उसी स्वर्ण-प्रतिमा को कलश पर स्थापित कर पूजन करे और इस मंत्र से दान कर दे --
      नमो मन्दारनाथाय मन्दारभवनाय च।
      त्वं च वै तारयस्वास्मानस्मात् संसारकर्दमात्।।
माहात्म्य --
           इस व्रत को करने से मनुष्य पूर्ण निष्पाप होकर एक कल्प तक स्वर्ग मे सुखमय जीवन व्यतीत करता है।इस विधान के श्रवण मात्र से ही मनुष्य पापमुक्त हो जाता है।

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