विशोकषष्ठी-व्रत माघ शुक्ल षष्ठी को किया जाता है।इसे करने से सभी शोक नष्ट हो जाते हैं।इसीलिए इसको विशोकषष्ठी कहते हैं।
कथा --
भविष्यपुराण मे इसका वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से किया था।परन्तु मत्स्यपुराण मे इसी को विशोकसप्तमी कहा गया है।
विधि --
व्रती पञ्चमी को प्रातः कृष्णतिल-मिश्रित जल से स्नान करके खिचड़ी का भोजन करे।दूसरे दिन षष्ठी को नित्यकर्म से निवृत्त होकर सुवर्ण-कमल मे सूर्यदेव का विधिवत् पूजन करे।पूजन मे लाल चन्दन ; लाल कनेर का फूल ; दो लाल वस्त्र ; धूप ; दीप ; नैवेद्य आदि समर्पित करे।बाद मे इस प्रकार प्रार्थना करे --
यथा विशोकं भवनं त्वयैवादित्य सर्वदा।
तथा विशोकता मे स्यात् त्वद्भक्तिर्जन्मजन्मनि।।
इसके बाद ब्राह्मण-भोजन कराये।स्वयं उपवास पूर्वक गोमूत्र-प्राशन करे।फिर गुड़ ; अन्न ; दो वस्त्र और सुवर्ण का दान करे।सप्तमी को तैल-लवण रहित भोजन करे।इस प्रकार एक वर्ष तक दोनो पक्षों की षष्ठी का व्रत करना चाहिए।वर्षान्त मे सप्तमी को स्वर्ण-कमल युक्त कलश ; सुसज्जित शय्या एवं गौ का दान करे।
माहात्म्य ---
जो मनुष्य इस व्रत को करता है ; वह करोड़ों वर्ष तक रोग ; शोक और दुर्गति से मुक्त रहता है।यदि किसी कामना से इस व्रत को किया जाय तो उस कामना की पूर्ति अवश्य होती है।निष्काम भाव से व्रत करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।यदि इसे एक बार भी कर लिया जाय तो भी वह दुःखमुक्त होकर इन्द्रलोक मे निवास करता है।
Saturday, 23 January 2016
विशोकषष्ठी-व्रत
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