Friday, 8 January 2016

माघ स्नान

           शरीर की निर्मलता एवं भाव-शुद्धि के लिए स्नान सदैव आवश्यक है।परन्तु माघ मास मे स्नान की विशिष्ट महत्ता है।इस मास मे प्रयाग ; पुष्कर ; कुरुक्षेत्र आदि तीर्थों मे स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।यदि इन तीर्थों मे न जा सके तो अपने निवास स्थान मे ही बस्ती से बाहर स्थित किसी नदी या सरोवर मे ही स्नान करना चाहिए।इससे भी पर्याप्त पुण्य की प्राप्ति होती है।

कथा --

           एक बार महर्षि भृगु हिमालय पर्वत पर तप कर रहे थे।उनके समक्ष एक विद्याधर अपनी पत्नी के साथ प्रस्तुत हुआ।उसने मुनिवर से निवेदन किया कि मेरी पत्नी अत्यन्त सुन्दर है किन्तु मेरा मुख व्याघ्र के समान है।अतः कोई ऐसा उपाय बतलाने की कृपा करें ; जिससे मेरा मुख सुन्दर बन जाय।महर्षि ने बतलाया कि तुमने पूर्व जन्म मे माघ मास की एकादशी का व्रत करके द्वादशी को तैल लगा लिया था।इसीलिए तुम्हारा मुख व्याघ्र का हो गया है।अतः तुम पौष शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल एकादशी तक समस्त भोगों को त्यागकर ; निराहार एवं भूशयन करते हुए माघ-स्नान करो तो सारे पाप धुल जायेंगे।विद्याधर ने वैसा ही किया।माघ शुक्ल द्वादशी को महर्षि ने मंत्रपूत जल से उसका अभिषेक किया।अतः वह सुन्दर रूप वाला बन गया।

स्नान-विधि ---

           यदि अपने निवास स्थान पर ही माघ-स्नान करना हो तो सर्वप्रथम तीर्थराज प्रयाग का स्मरण करें।उसके बाद जल मे इस प्रकार तीर्थों का आवाहन करें --

पुष्करादीनि तीर्थानि गङ्गाद्याःसरितस्तथा।
आगच्छन्तु पवित्राणि स्नानकाले सदा मम।।
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती ज्ञेया सप्तैता मोक्षदायिकाः।।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।।
         इस प्रकार तीर्थों का आवाहन करके स्नान करे।उसके बाद सूर्यार्घ्य प्रदान कर अपने इष्टदेव का पूजन करे।
           माघ मे सूर्योदय के पूर्व आकाश मे इने-गिने तारे रहते समय स्नान करना चाहिए।इसके बाद जितना विलम्ब होता जायेगा ; उतना ही पुण्यफल कम होता जाता है।माघ-स्नान की अवधि एक मास की है।इस सन्दर्भ मे तीन मत हैं।प्रथम मतानुसार पौष शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल एकादशी तक स्नान करना चाहिए।द्वितीय मत के अनुसार पौष शुक्ल पूर्णिमा से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक स्नान करे।तृतीय मतानुसार मकर संक्रान्ति से लेकर कुम्भ संक्रान्ति तक स्नान करना चाहिए।
           माघ स्नान करने वाले को सन्यासियों की भाँति आचरण करना चाहिए।उसे काम क्रोध लोभ मोह आदि से दूर रहना चाहिए।यदि हो सके तो प्रतिदिन हवन करे।ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए शुद्ध सात्विक भोजन एवं भूशयन करे।माघ मे तिल का उबटन ; तिल-मिश्रित जल से स्नान ; तर्पण ; तिलों का हवन ; तिल-दान तथा तिल-मिश्रित वस्तुओं का भोजन करने से विशेष पुण्यलाभ होता है।माघ मास भर स्नान करने के बाद ब्राह्मण को भोजन ; वस्त्र ; आभूषण आदि दान करना चाहिए।दान देने के बाद " माधवः प्रीयताम् " कहना चाहिए।

माहात्म्य ---

           शास्त्रों मे माघ-स्नान की असीम महत्ता वर्णित है।जो व्यक्ति नियम पूर्वक माघ-स्नान करता है ; उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसकी इक्कीस पीढ़ियाँ तर जाती हैं।वह समस्त सांसारिक सुखों का भोगकर अन्त मे विष्णुलोक को प्राप्त करता है।यदि किसी कामना से माघ-स्नान किया जाय तो उस कामना की पूर्ति अवश्य होती है।निष्काम भाव से स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।माघ-स्नान से बढ़कर पवित्र एवं पापनाशक उपाय दूसरा कोई नहीं है।इसलिए दीर्घायु ; आरोग्य ; रूप-सौन्दर्य ; सौभाग्य ; उत्तम गुण ; धन-धान्य आदि की प्राप्ति के लिए माघ-स्नान अवश्य करना चाहिए।

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