Tuesday, 26 January 2016

जयाएकादशी-व्रत

           जयाएकादशी-व्रत माघ शुक्ल एकादशी को किया जाता है।
कथा ---
-------      एक बार देवराज इन्द्र ने नन्दन-वन मे संगीत का आयोजन किया।उसमे अनेक गन्धर्वों के साथ चित्रसेन की पुत्री पुष्पदन्ती तथा पुष्पदन्त के पुत्र माल्यवान् ने भी भाग लिया।ये दोनों एक दूसरे पर आसक्त थे।जब इनका गान आरम्भ हुआ तब परस्पर वशीभूत होने के कारण शुद्ध गान नही कर सके।इसे देखकर इन्द्र को क्रोध आ गया।अतः उन्होने उन दोनो को पिशाच होने का शाप दे दिया।
          वे दोनो अभिषप्त जीवन व्यतीत करते हुए हिमालय पर चले गये।संयोगवश जया एकादशी आ गयी।दोनो ने निर्जला-निराहार व्रत एवं रात्रि-जागरण किया।इसके प्रभाव से वे दोनो पिशाचत्व से मुक्त होकर अपने पूर्व रूप मे आ गये।इसके बाद वे दोनो इन्द्र के पास गये।उन्हें प्रणाम करके पिशाचत्व से मुक्त होने का सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया।इन्द्र बहुत प्रसन्न हुए और दोनो को ससम्मान अमृत भी पिलाया।
विधि ---
------         व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प पूर्वक भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन करे।दिन भर उपवास एवं भगवन्नाम-स्मरण करता हुआ रात्रि-जागरण करे।दूसरे दिन विधिवत् पारणा करे।
माहात्म्य --
------------     जया एकादशी बहुत पवित्र ; पापनाशिनी एवं भोग-मोक्ष-प्रदायिनी है।वह ब्रह्महत्या सदृश पापों और पिशात्व को भी नष्ट कर देती है।जो व्यक्ति इसका व्रत करता है ; उसे सभी प्रकार के दान एवं यज्ञों का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है।उसे कभी भी प्रेतयोनि मे नही जाना पड़ता है।

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