गौरीतृतीया-व्रत माघ शुक्ल तृतीया को किया जाता है।इसमे गौरी-पूजन की प्रधानता होने के कारण इसे गौरीतृतीया कहा जाता है।
कथा ---
इस व्रत का निर्देश स्वयं गौरी जी ने धर्मराज जी से किया था।बाद मे इसका वर्णन सुमन्तुमुनि ने महाराज शतानीक से किया।इसे इन्द्राणी ; अरुन्धती ; रोहिणी आदि ने भी किया था।
विधि --
यह व्रत महिलाओं एवं कन्याओं के लिए है।व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर भगवती गौरी की स्वर्ण-प्रतिमा स्थापित करे।गन्धाक्षत पुष्पादि द्वारा उनका पूजन करे।रात्रि मे लवण-रहित भोजन करके प्रतिमा के समक्ष शयन करे।दूसरे दिन भोजन एवं दक्षिणा से ब्राह्मणो को सन्तुष्ट करे।शिव जी की प्रसन्नता के लिए मोदक और जल का दान करे।इस व्रत को वैशाख और भाद्रपद मास की शुक्ला तृतीया को भी किया जा सकता है।
माहात्म्य ---
इस व्रत को सधवा करे तो पूर्ण दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है।विधवा करे तो स्वर्ग मे अपने पति को प्राप्तकर वहाँ दीर्घकाल तक सुखमय जीवन व्यतीत करती है।कन्या करे तो उत्तम पति की प्राप्ति होती है।
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