Friday, 29 January 2016

ग्रहण के कृत्याकृत्य

           मानव-शरीर पर ग्रहण का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।अतः महर्षियों ने ग्रहण-काल मे अनेक करणीय एवं अकरणीय कार्यों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है।यहाँ कुछ महत्वपूर्ण विन्दुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
1-- सूर्यग्रहण लगने के 12 घण्टे पूर्व तथा चन्द्रग्रहण लगने के 09 घण्टे पूर्व सूतक लग जाता है।सूतक-काल मे उबटन ; भोजन ; मैथुन ; जलपान ; यात्रा ; शयन ; मलमूत्र-त्याग ; देवमूर्ति-स्पर्श आदि नही करना चाहिए।परन्तु बाल ; वृद्ध और रोगी के लिए यह नियम-पालन अनिवार्य नही है।
           ग्रहण-काल मे शयन करने से मनुष्य रोगी ; लघुशंका करने से दरिद्र ; मलत्याग करने से कीट ; मैथुन करने से सूअर और उबटन लगाने से कुष्ठी हो जाता है।
          देवी भागवत के अनुसार जो मनुष्य सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय भोजन करता है ; वह अन्न के दानों की संख्या के बराबर वर्षों तक अरुन्तुद नामक नरक मे रहता है।उसके बाद जन्मान्तर मे उदर एवं प्लीहा रोग से पीड़ित ; काना तथा दन्तहीन हो जाता है।
2-- ग्रहण-काल मे किसी शुभ एवं नवीन कार्य का आरम्भ नही करना चाहिए।
3-- ग्रहण-काल मे गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्क रहना चाहिए।उन्हें सूतक लगने के पूर्व ही अपने पेट मे गोबर अथवा तुलसी की पत्ती का लेप लगा लेना चाहिए।उन्हे ग्रहण देखना नितान्त वर्जित है।ग्रहण देखने से गर्भस्थ शिशु अंगहीन हो सकता है।ऐसी महिलाओं को सिलाई ; कटाई भी नही करनी चाहिए।
4-- ग्रहण के समय कीटाणुओं की संख्या बढ़ जाती है।वे भोज्यपदार्थों मे प्रविष्ट हो सकते हैं।अतः ग्रहण के पूर्व ही दूध ; दही ; घी आदि भोज्यपदार्थों पर कुश या तुलसी-दल रख देना चाहिए।इससे वे पदार्थ दूषित नही होते हैं।पहले से पके हुए भोजन को त्याग देना चाहिए।पहले से रखे हुए जल को फेक देना चाहिए तथा ग्रहण-मोक्ष के बाद ताजा जल लेना चाहिए।
5-- ग्रहण के समय जप ; तप ; दान ; श्राद्ध ; मंत्रसिद्धि आदि करने का विधान है।इस समय इन कार्यों मे उत्तम सफलता मिलती है।भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रग्रहण या सूर्यग्रहण का समय श्राद्ध एवं पुण्यकार्यों के लिए विशेष उपयुक्त होता है।यह समय कल्याण-साधना के लिए उपयोगी एवं शुभ की अभिवृद्धि करने वाला है।इस समय पूरी शक्ति लगाकर शुभ कर्म करना चाहिए।इस समय जो स्नान ; जप ; होम ; व्रत आदि किया जाता है ; उसका अक्षय फल मिलता है।
6-- ग्रहण मे आरम्भ और मोक्ष दोनो समयों मे स्नान का विधान है।ग्रहण के अन्त मे वस्त्र-सहित स्नान करना चाहिए।ग्रहण के समय जिन वस्त्रों को स्पर्श किया गया हो ; उन्हे भी धुल लेना चाहिए।
7-- हेमाद्रि के अनुसार ग्रहण के आदि मे स्नान ; मध्य मे होम ; मोक्ष होते समय दान और मोक्ष के बाद पुनः स्नान करना चाहिए।
8-- ग्रहण मे किसी पवित्र नदी मे स्नान करना चाहिए।इससे सामान्य दिनो की अपेक्षा चन्द्रग्रहण मे एक लाख गुना और सूर्यग्रहण मे दस लाख गुना पुण्यफल होता है।परन्तु गंगा स्नान करने पर चन्द्रग्रहण मे एक करोड़ गुना तथा सूर्यग्रहण मे दस करोड़ गुना पुण्य लाभ होता है।सहस्र कोटि गौओं के दान से जो फल प्राप्त होता है ; वही फल चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण मे गंगा स्नान करने से मिलता है।
            गंगा अथवा अन्य कोई नदी न मिले तो कूप ; सरोवर आदि मे स्नान करना चाहिए।स्नान करते समय गंगा ; कनखल ; प्रयाग ; पुष्कर आदि तीर्थों का नाम स्मरण कर लेने से भी पर्याप्त पुण्य प्राप्त होता है।
9-- यदि रविवार को सूर्यग्रहण और सोमवार को चन्द्रग्रहण हो तो यह चूडामणि योग कहलाता है।इसमे दिया हुआ दान अनन्त फलदायक होता है।अन्य दिनो के ग्रहण की अपेक्षा चूडामणि योग मे करोड़ो गुना पुण्यलाभ होता है।
10-- अनिष्टकारी सूर्यग्रहण मे सोने की और चन्द्रग्हण मे चाँदी का बिम्ब ; घोड़ा ; गौ ; भूमि ; तिल ; घृत आदि का दान करना चाहिए।
11-- भगवान के नाम का स्मरण ; संकीर्तन ; जप आदि तो सभी को करना चाहिए।
          

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