Sunday, 17 January 2016

तिलद्वादशी-व्रत

           तिलद्वादशी-व्रत तब किया जाता है ; जब माघ कृष्ण द्वादशी को मूल अथवा पूर्वाषाढ नक्षत्र विद्यमान हो।इस दिन तिलों की उत्पत्ति हुई थी।इसीलिए इसे तिलद्वादशी कहा जाता है।

कथा ---

           एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से किसी ऐसे उपाय के विषय मे पूछा ; जिससे थोड़े परिश्रम एवं स्वल्पदान से सभी पाप कट जायें।उस समय उन्होंने तिलद्वादशी व्रत का निर्देश दिया था।

विधि --

           सर्वप्रथम माघ कृष्ण एकादशी को उपवास करे।द्वादशी को काले तिल से स्नान करके व्रत का संकल्प ले।फिर भगवान श्री कृष्ण का विधिवत् पूजन करे।ब्राह्मणों को काले तिल का दान करे।स्वयं भी तिलों का भोजन करे।इस प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक कृष्ण द्वादशी को व्रत करे।वर्षान्त मे बारह ब्राह्मणों को तिल से परिपूर्ण काला घट ; पक्वान्न ; छाता ; जूता ; वस्त्र ; द्रव्य आदि का दान करे।

माहात्म्य ---

           इस व्रत को करने से मनुष्य असंख्य वर्षों तक स्वर्ग मे पूजित होता है।फिर जब भी पृथ्वी पर जन्म लेता है; तब अंधा ; बहरा अथवा कुष्ठी नही होता है।वह सदैव सुखी एवं नीरोग रहता है।

No comments:

Post a Comment