Monday, 4 January 2016

शाकम्भरी-जयन्ती

            शाकम्भरी-जयन्ती का पर्व पौष मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाया जाता है।इस दिन माता शाकम्भरी का प्रादुर्भाव हुआ था।इसीलिए शाकम्भरी जयन्ती कहा जाता है।

कथा ---

           प्राचीन काल मे दुर्गम नामक दैत्य ने देवताओं को पराजित कर अमरावतीपुरी पर अपना अधिकार कर लिया।देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए हिमालय पर माता महेश्वरी का स्तवन किया।माता जी प्रकट हुईं।वे अपने उन पुत्रों का कष्ट सुनकर रोने लगीं।धीरे-धीरे उनके सौ नेत्र उभर आये।वे नौ दिनो तक अनवरत रोती रहीं।चारो ओर अश्रुजल फैल गया ; जिससे जल का अभाव समाप्त हो गया।विभिन्न प्रकार की फसलें एवं शाक लहराने लगे।उस समय अपने शरीर से उत्पन्न शाकों ( भोज्य सामग्री ) के द्वारा देवी ने सबका भरण - पोषण किया।इसलिए इन्हें शाकम्भरी देवी कहा जाता है।बाद मे इन्होने ही दुर्गम का वध कर देवताओं का कष्ट दूर किया था।

विधि --

           व्रती नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर गन्ध पुष्प आदि से माता शाकम्भरी देवी का विधिवत् पूजन करे।ब्राह्मण भोजन एवं कन्या भोजन की व्यवस्था करे।स्वयं उपवास कर दूसरे दिन पारणा करे।

माहात्म्य ---
  
           माता शाकम्भरी अत्यन्त दयालु एवं पुत्रवत्सला हैं।जो व्यक्ति इनकी आराधना करता है ; वह शीघ्र ही अन्न जल एवं अमृत रूप अक्षय फल को प्राप्त कर लेता है --

शाकम्भरीं स्तुवन् ध्यायञ्जपन् सम्पूजयन्नमन्।
अक्षय्यमश्नुते शीघ्रमन्नपानामृतं फलम्।।

No comments:

Post a Comment