ईशान-व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की उस चतुर्दशी को किया जाता है ; जब उसके दूसरे दिन अर्थात् पूर्णिमा को पुष्य नक्षत्र विद्यमान हो।
विधि --
व्रती चतुर्दशी को स्नानादि करके व्रत का संकल्प लेकर दिन भर शिव जी का स्मरण करते हुए उपवास करे।दूसरे दिन पुष्य नक्षत्र युक्त पूर्णिमा को शुभासन पर पूर्वाभिमुख बैठकर अपने समक्ष वेदी पर श्वेत वस्त्र बिछा दे।उसमे चारो दिशाओं मे अक्षत पुञ्ज रखे।उसके बाद चारो के बीच मे भी एक पुञ्ज रखे।फिर पूर्व दिशा वाले पुञ्ज मे भगवान विष्णु का ; दक्षिण वाले मे सूर्य का ; पश्चिम वाले मे ब्रह्मा का ; उत्तर मे रुद्र का और बीच वाले मे ईशान का आवाहन करे।गन्ध अक्षत आदि से उनका विधिवत् पूजन करे।ब्राह्मण को गोमिथुन ( एक गाय तथा एक बैल ) देकर ; भोजन और दक्षिणा से सन्तुष्ट करे।स्वयं गोमूत्र प्राशन कर उपवास करे।दूसरे दिन पारणा करे।
इस प्रकार पाँच वर्ष तक पौष शुक्ल चतुर्दशी-पूर्णिमा को व्रत करे।इसमे प्रथम वर्ष मे एक गाय एक बैल का दान करे ; दूसरे वर्ष दो गाय एक बैल ; तीसरे वर्ष तीन गाय एक बैल ; चतुर्थ वर्ष चार गाय एक बैल तथा पाँचवे वर्ष पाँच गाय एक बैल का दान करना चाहिए।
माहात्म्य --
यद्यपि यह व्रत बहुत व्यय साध्य है किन्तु इसका पुण्य-फल बहुत अधिक है।इससे सब प्रकार का सुख और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
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