Monday, 25 January 2016

गणेश जी की उत्पत्ति

           गणेश जी की उत्पत्ति के विषय मे अनेक कथायें प्रचलित हैं।पिछले लेखों  --" संकष्ट-गणेश-चतुर्थी-व्रत " एवं " संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत " मे गणेशोत्पत्ति सम्बन्धी कुछ कथायें प्रस्तुत कर चुका हूँ।अब वराहपुराण के आधार पर गणेशोत्पत्ति की कथा प्रस्तुत है।कथाओं मे भिन्नता का कारण यह है कि भिन्न-भिन्न कल्पों मे उनका आविर्भाव भिन्न प्रकार से हुआ है।इसलिए सभी कथायें सत्य एवं प्रामाणिक हैं।
           प्राचीन काल मे देवताओं और ऋषियों-मुनियों के सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होते थे।किन्तु कालान्तर मे उनकी कार्य-सिद्धि मे बाधायें आने लगीं।अतः वे इस समस्या का समाधान पाने के लिए शिव जी के पास कैलास पर्वत गये।शिव जी उनकी बातें सुनकर उमा जी की ओर देखने लगे।उन्हें अचानक हँसी आ गयी।उसी समय शिव जी के मुख से एक परम तेजस्वी कुमार प्रकट हुआ।उसके मुख के तेज से सभी दिशायें प्रकाशित हो गयीं।उसमे शिव जी के सभी गुण विद्यमान थे।उमा जी उसे अपलक-दृष्टि से देखने लगीं।
          यह दृश्य देखकर शिव जी क्रुद्ध हो गये।उन्होंने कुमार को शाप दे दिया कि तुम्हारा मुख हाथी के समान और पेट लम्बा हो जायेगा।इतना कहने पर भी उनका क्रोध शान्त नहीं हुआ।उनके शरीर के रोमकूपों से जल निकलने लगा।उससे अनेक विनायकों का प्रादुर्भाव हो गया।उसी समय ब्रह्मा जी आ गये।उन्होने शिव जी से अनुरोध किया कि आप अपने मुख से प्रकट होने वाले इस कुमार को इन विनायकों का स्वामी बनाने की कृपा करें।साथ ही इन्हें समस्त विघ्न-बाधाओं का विनाश करने का सामर्थ्य भी प्रदान करें।
           शिव जी ने सभी देवताओं एवं ऋषियों-मुनियों के समक्ष उस कुमार को सभी विनायकों एवं गणों के स्वामी पद पर अभिषिक्त कर दिया।इसीलिए वे गणों के ईश अर्थात् गणेश के नाम से प्रसिद्ध हो गये।शिव जी ने उन्हें प्रथम-पूज्य ; विघ्नविनाशक एवं सर्वसिद्धि-प्रदायक होने का वरदान भी दिया।
           गणेश जी का इस प्रकार जन्म एवं अभिषेक आदि सारी क्रियायें चतुर्थी तिथि को ही सम्पन्न हुई थीं।इसीलिए इस तिथि को इतना महत्व प्राप्त हुआ है।जो व्यक्ति इस तिथि को तिलों का आहार ग्रहण करता है।गणेश जी की आराधना करता है।उस पर गणेश जी अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।वे अपने भक्त को निष्पाप बना देते हैं।उसे जीवन मे किसी प्रकार की विघ्न-बाधा का सामना नही करना पड़ता है।

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