Monday, 1 February 2016

अर्कपुटसप्तमी-व्रत ( अर्कसम्पुटिका सप्तमी व्रत )

          फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को अर्कसप्तमी कहा जाता है।इसमे दाँत और ओष्ठ से स्पर्श किये बिना ही अर्कपुट का प्राशन किया जाता है।इसलिए इसे अर्कपुट या अर्कसम्पुटिका सप्तमी कहते हैं।

कथा ---
-------   प्राचीन काल मे हिरण्यनाभ नामक एक ब्राह्मण अपने पुत्र कौथुमि के साथ राजा जनक के आश्रम पर गये।वहाँ शास्त्रार्थ करते समय कौथुमि ने एक ब्राह्मण का वध कर दिया।अतः ब्रह्महत्या रूपी पाप के कारण कौथुमि को कुष्ठ हो गया।वह अनेक तीर्थों एवं देवालयों मे गया किन्तु रोगमुक्त नहीं हुआ।अन्त मे अपने पिता से रोगमुक्त होने का उपाय पूछा।पिता हिरण्यनाभ ने उसे अर्कसप्तमी का व्रत एवं सूर्य-पूजन करने का निर्देश दिया।कौथुमि ने वैसा ही किया और रोगमुक्त हो गया।

विधि --
-------   व्रती षष्ठी को उपवास या एकभुक्त व्रत करे।सप्तमी को प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास पूर्वक सूर्य-गायत्री का जप करे -- ऊँ भास्कराय विद्महे सहस्र-रश्मिं धीमहि।तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।
         इसके बाद गन्धाक्षत आदि से सूर्य-पूजन कर ब्राह्मण-भोजन कराये।तत्पश्चात् " ऊँ खखोल्काय नमः " मंत्र से अर्कवृक्ष की पूजा करे।फिर अर्क-पल्लव ग्रहण करे।अर्कपुटों से सूर्य-पूजन करे और " अर्को मे प्रीयताम् " कहे।इसके बाद सूर्य के समक्ष पूर्वाभिमुख होकर निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करते हुए जल के साथ दाँत छुए बिना अर्कपुट निगल जाय --
   ऊँ अर्कसम्पुट भद्रं ते सुभद्रं मेऽस्तु वै सदा।
    ममापि कुरु भद्रं वै प्राशनाद् वित्तदो भव ।।

माहात्म्य --

          इस व्रत को करने से मनुष्य का धन अचल एवं अक्षय हो जाता है।साथ ही कुष्ठी का कुष्ठरोग दूर हो जाता है।

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