अपने देश मे प्रचलित सभी पर्वों मे होली का विशिष्ट स्थान है।इसे सभी त्योहारों का राजा कहा जाता है।होलिका-दहन तो फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा की रात्रि मे होता है।किन्तु रंगोत्सव रूपी होली दूसरे दिन मनाई जाती है।कहीं कहीं यह रंगोत्सव बैजला के रूप मे तीसरे दिन मनाया जाता है।
कथा --
------ सत्ययुग मे महर्षि कश्यप की पत्नी दिति के गर्भ से हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए।हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह अवतार द्वारा कर दिया था।इसीलिए हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से द्वेष करने लगा।उसने कठोर तप के द्वारा पर्याप्त शक्ति अर्जित कर ली।वह इतना अहंकारी हो गया कि अपने आपको भगवान मानने लगा।
हिरण्यकशिपु के कनिष्ठ पुत्र का नाम प्रह्लाद था।वे भगवान नारायण के परम भक्त थे।एक दिन हिरण्यकशिपु ने उनसे पूछा कि तुमने गुरुगृह मे क्या पढ़ा है ? हमे भी सुनाइये।प्रह्लाद ने भगवान की महत्ता एवं सर्वशक्तिमत्ता का वर्णन किया।इसे सुनकर हिरण्यकशिपु क्रुद्ध हो गया।उसने प्रह्लाद से कहा कि अब भविष्य मे कभी भी मेरे शत्रु अर्थात् विष्णु का नाम मत लेना।परन्तु प्रह्लाद ने उनकी बात नहीं मानी।वे सदैव भगवान का नामजप करते रहते थे।इससे असुरराज इतना क्रुद्ध हो गया कि उसने प्रह्लाद को मारने के लिए पर्वत से गिराया ; समुद्र मे डुबाया ; विष पिलाया फिर भी प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ।
अन्त मे हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन ढुंढा से कहा कि तुम्हें तो अग्नि मे न जलने का वरदान प्राप्त है।अतः तुम प्रह्लाद को गोद मे लेकर अग्नि-पुञ्ज मे बैठकर इसे जला दो।ढुंढा ने वैसा ही किया।भगवान की कृपा से भक्त प्रह्लाद तो बच गये किन्तु ढुंढा जलकर भस्म हो गयी।अतः भक्त प्रह्लाद की विजय एवं रक्षा की प्रसन्नता मे यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
कुछ विद्वान होली को नवान्नेष्टि यज्ञ के रूप मे मानते हैं।इस समय तक गेहूँ ; जौ ; चना आदि फसलें लगभग तैयार हो जाती हैं।अतः सभी ग्रामीण गोबर के उपले एकत्रित करके होली को यज्ञ-कुण्ड की तरह तैयार करते हैं।फिर उसमे गेहूँ जौ आदि की बालियाँ आहुति के रूप मे डालते हैं।हुतशेष बालियाँ घर लाते हैं।
लोगों की मान्यता है कि इस दिन शरीर मे उबटन लगाकर उसकी मैल को होली मे डाल देना चाहिए।इससे उस व्यक्ति के सभी रोग ; शोक ; दोष आदि नष्ट हो जाते हैं।होली का दर्शन और तापना बहुत शुभ माना जाता है।प्रायः सभी दर्शनार्थी पाँच-पाँच उपले होली मे डालते हैं और तापते हुए परिक्रमा करते हैं।होली की विभूति लेकर उसे मस्तक मे लगाया जाता है।
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