Wednesday, 24 February 2016

माता सिद्धिदात्री

           मातेश्वरी दुर्गा जी के नवम स्वरूप का नाम माता सिद्धिदात्री है।नवरात्र मे नवमी तिथि को इन्हीं का पूजन होता है।
           माता सिद्धिदात्री के नामकरण के सम्बन्ध मे कई मत प्रचलित हैं। " सिद्धेः मोक्षस्य दात्री इति सिद्धिदात्री " --- अर्थात् ये सिद्धि या मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।इसलिए इन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है। एक अन्य मत के अनुसार अणिमा ; महिमा ; गरिमा ; लघिमा ; प्राप्ति ; प्राकाम्य ; ईशित्व और वशित्व रूपी आठों सिद्धियों को प्रदान करने वाली होने के कारण इन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।ब्रह्मवैवर्त पुराण मे अट्ठारह प्रकार की सिद्धियाँ बताई गयी हैं।इन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी को सिद्धिदात्री कहा जाता है।देवीभागवत पुराण के अनुसार भगवान शिव जी ने इन्हीं देवी की उपासना करके सिद्धि प्राप्त की थी।इसीलिए इन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
           माता सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यन्त दिव्य ; भव्य एवं मनभावन है।ये सिंहवाहिनी एवं चतुर्भुजी हैं।इनके ऊपर वाले दक्षिण हस्त मे गदा तथा निचले हाथ मे चक्र सुशोभित है।इसी प्रकार ऊपर वाले वाम हस्त मे कमलपुष्प तथा नीचे वाले हाथ मे शंख विराजमान है।ये कमलपुष्प पर भी विराजमान र होती हैं।इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है।
           इनके नाम से ही स्पष्ट है कि ये अपने भक्तों को हर प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने मे सक्षम हैं।ऊतः इनकी उपासना से मनुष्य लौकिक एवं पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की सिद्धि प्राप्त कर लेता है।उसे किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता है।उसे संसार की निस्सारता का बोध एवं अमृतत्व की प्राप्ति हो जाती है।
               माता सिद्धिदात्री की उपासना से सब कुछ पाया जा सकता है।अतः प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति को इनकी उपासना अवश्य करनी चाहिए।इनका ध्यान इस मंत्र से करना चाहिए ---
    सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
    सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
   ----- अर्थात् सिद्धों ; गन्धर्वों ; यक्षो ; असुरों तथा देवताओं द्वारा भी सदा सेवित रहने वाली माता सिद्धिदात्री जी मेरे लिए सिद्धि प्रदान करने वाली हों।

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