Friday, 12 February 2016

नवरात्र मे कुमारी-पूजन

           नवरात्र मे कुमारी पूजन का असीम महत्व है।बल्कि यह कहा जा सकता है कि कुमारी पूजन के बिना नवरात्र व्रत सम्पन्न ही नही होता है।अतः कुमारी पूजन अवश्य करना चाहिए।प्रतिदिन एक ही कुमारी का पूजन करे अथवा नित्य एक-एक कुमारी की संख्या बढ़ाते हुए पूजन करे।प्रतिदिन दो गुना तीन गुना वृद्धिक्रम से किया जा सकता है।प्रतिदिन नौ-नौ कुमारियों का पूजन किया जा सकता है अथवा अन्तिम दिन नौ कुमारियों का पूजन करे।ये कन्यायें दो वर्ष से लेकर दस वर्ष तक की होनी चाहिए।इससे कम या अधिक की निषिद्ध हैं।
           अब यहाँ कुमारियों की संज्ञा ; पूजन विधि एवं उनके पूजन के माहात्म्य का वर्णन किया जा रहा है --
1-- कुमारी --
             दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है।इनके पूजन से मनुष्य का दुःख -दारिद्र्य दूर हो जाता है।उसके धन ; दीर्घायु एवं बल की वृद्धि होती है।उसके शत्रुओं का क्षय हो जाता है।गन्धाक्षत आदि से इनका पूजन करते समय यह भाव व्यक्त करना चाहिए --
     कुमारस्य च तत्वानि या सृजत्यपि लीलया।
     कादीनपि  च देवांस्तां कुमारीं पूजयाम्यहम्।।
          अर्थात् जो भगवती कुमार के रहस्मय तत्वों एवं ब्रह्मादि देवों की भी लीलापूर्वक रचना करती हैं ; उन कुमारी जी का मै पूजन करता हूँ।
2-- त्रिमूर्ति ---
          तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति कहा जाता है।इनके पूजन से मनुष्य के धर्म अर्थ और काम इन तीन की पूर्ति होती है।धन-धान्य का आगम एवं पुत्र-पौत्र की वृद्धि होती है।इनके पूजन मे यह भाव रखे --
     सत्वादिभिस्त्रिमूर्तिर्या तैर्हि नानास्वरूपिणी।
     त्रिकालव्यापिनीं शक्तिस्त्रिमूर्तिं पूजयाम्यहम्।।
         अर्थात् जो सत्व रज तम इन तीन गुणों से तीन रूप धारण करती हैं।जो अनेक रूपा एवं त्रिकाल-सर्व-व्यापिनी हैं ; उन भगवती त्रिमूर्ति का मै पूजन करता हूँ।
3-- कल्याणी --
           चार वर्ष की कन्या कल्याणी कहलाती है।इनका पूजन करने से विद्या ; विजय ; राज्य एवं सुख की प्राप्ति होती है।इनके पूजन के समय यह भाव व्यक्त करे --
     कल्याणकारिणी नित्यं भक्तानां पूजितानिशम्।
     पूजयामि च तां भक्त्या कल्याणीं सर्वकामदाम्।
          अर्थात् जो निरन्तर पूजित होने पर अपने भक्तों का नित्य कल्याण करती हैं।उनकी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं।उन भगवती कल्याणी की मै पूजा करता हूँ।
4-- रोहिणी -- पाँच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है।इनके पूजन से मनुष्य के सभी रोगों का नाश हो जाता है।इनके पूजन मे यह भाव व्यक्त करे --
     रोहयन्ती च बीजानि प्राग्जन्मसञ्चितानि वै।
      या देवी सर्वभूतानां रोहिणी पूजयाम्यहम्।।
        अर्थात् जो देवी सभी जीवों के पूर्वजन्म के संचित कर्म रूपी बीज का आरोपण करती हैं।उन भगवती रोहिणी की मै पूजा करती हूँ।
5-- कालिका --
           छः वर्ष की कन्या को कालिका कहा जाता है।इनके पूजन से शत्रुओं का विनाश हो जाता है।इनके पूजन मे यह भाव रखे --
     काली कालयते सर्वं ब्रह्माण्डं सचराचरम्।
     कल्पान्तसमये या तां कालिकां पूजयाम्यहम्।।
      अर्थात् जो देवी कल्पान्त के समय चराचर सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने आप मे विलीन कर लेती हैं।उन भगवती कालिका की मै पूजा करता हूँ।
6-- चण्डिका --
      सात वर्ष की कन्या को चण्डिका कहा जाता है।इनका पूजन करने से धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।इनके पूजन के समय यह भाव रखे --
      चण्डिकां चण्डरूपाञ्च चण्डमुण्डविनाशिनीम्।
     तां चण्डपापहरिणीं चण्डिकां पूजयाम्यहम्।।
        अर्थात् अत्यन्त उग्र स्वभाव वाली ; उग् रूप धारण करने वाली ; चण्डमुण्ड का संहार करने वाली एवं घोर पापों का विनाश करने वाली भगवती चण्डिका का मै पूजन करता हूँ।
7-- शाम्भवी --
        आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है।इनके पूजन से दुःख-दारिद्र्य का विनाश ; सम्मोहन-सिद्धि एवं विजय की प्राप्ति होती है।इनके पूजन के समय यह भाव रखे --
       अकारणात्समुत्पत्तिर्यन्मयैः परिकीर्तिता।
        यस्यास्तां सुखदां देवीं शाम्भवीं पूजयाम्यहम्।।
        अर्थात् वेद जिनके स्वरूप हैं ; उन्ही वेदों के द्वारा जिनकी उत्पत्ति अकारण बताई गयी है ; उन सुखदायिनी भगवती शाम्भवी की मै पूजा करता हूँ।
8-- दुर्गा --
         नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है।इनका पूजन करने से शत्रुओं का विनाश हो जाता है तथा उग्र कर्म की साधना के निमित्त और परलोक मे सुख की प्राप्ति होती है।इनका पूजन करते समय यह भाव रखें --
     दुर्गात्त्रायति भक्तं या सदा दुर्गार्तिनाशिनी।
      दुर्ज्ञेया सर्वदेवानां तां दुर्गां पूजयाम्हम्।।
       अर्थात् जो अपने भक्तों  को सदैव संकट से बचाती हैं।विघ्नो एवं दुःखों का नाश करती हैं।जो सभी देवों के लिए दुर्ज्ञेय हैं ; उन भगवती दुर्गा की मै पूजा करता हूँ।
9-- सुभद्रा --
           दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है।इनके पूजन से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।इनके पूजन के समय यह भाव रखना चाहिए --
     सुभद्राणि च भक्तानां कुरुते पूजिता सदा।
      अभद्रनाशिनीं देवीं सुभद्रां पूजयाम्यहम्।।
         अर्थात् जो पूजित होने पर भक्तो का सदा कल्याण करती हैं ; उन अमंगलनाशिनी भगवती सुभद्रा का मै पूजन करता हूँ।
  पूजन सामग्री ---
          यदि सामर्थ्य हो तो इन कन्याओं को वस्त्र आभूषण माला आदि से पूजन करना चाहिए।साथ ही दक्षिणा के रूप मे कुछ द्रव्य भी देना चाहिए।
        

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