Monday, 15 February 2016

माता शैलपुत्री

          मातेश्वरी दुर्गा जी के प्रथम स्वरूप का नाम शैलपुत्री है।" शैलस्य पुत्रीति शैलपुत्री " -- अर्थात् शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।नवरात्र मे प्रथम दिवस इन्हीं का पूजन होता है।
           पूर्वजन्म मे ये दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप मे अवतरित होकर सती नाम से विख्यात हुईं और शिव जी की अर्धाङ्गिनी बनीं।किन्हीं कारणों से दक्ष जी भगवान शिव जी से द्वेष करने लगे।उन्होंने अपने यज्ञ मे ब्रह्मा ; विष्णु आदि सभी देवताओं को आमन्त्रित किया किन्तु शिव जी को आमन्त्रित नहीं किया।फिर भी सती जी आग्रह पूर्वक उस यज्ञ मे गयीं।वहाँ उन्होंने देखा कि यज्ञ मे शिव जी का भाग नहीं है।साथ ही दक्ष ने सती और शिव जी के लिए अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया।अतः इस अपमान को न सहन कर सकने के कारण सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया।
           कालान्तर मे देवताओं ने पर्वतराज हिमालय से उमा जी की आराधना करने के लिए कहा ; जिससे सती जी उनकी पुत्री के रूप मे अवतरित हो सकें।हिमालय और उनकी पत्नी मेना ने कठोर तप किया।उसी के परिणाम स्वरूप सती जी हिमालय की पुत्री के रूप मे अवतरित हुईं और शैलपुत्री ; पार्वती आदि नामों से प्रसिद्ध हुईं।बाद मे वे भगवान शिव जी की अर्धाङ्गिनी बनीं।
           ममतामयी शैलपुत्री जी का स्वरूप अत्यन्त भव्य एवं दिव्य है।उनके दक्षिण हस्त मे त्रिशूल और वाम हस्त मे कमल-पुष्प सुशोभित है।इनका वाहन वृषभ है।इसलिए इन्हें वृषभारूढ़ा भी कहा जाता है।
          शैलपुत्री जी अत्यन्त दयालु एवं भक्तवत्सला हैं।इनकी आराधना से मनुष्य सदैव धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है।उसे किसी भी प्रकार की आपदा का सामना नहीं करना पड़ता है।इनका ध्यान इस मन्त्र से करना चाहिए --
        वन्दे वाँछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
        वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
         ----- अर्थात् मै मनोवाँछित लाभ के लिए  मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाली ; वृष पर सवारी करने वाली ; शूलधारिणी एवं यशस्विनी माता शैलपुत्री की वन्दना करता हूँ।

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