Sunday, 28 February 2016

मदन द्वादशी व्रत

           मदन द्वादशी व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को किया जाता है।इसमे काम-पूजन की प्रधानता होने के कारण इसे मदन द्वादशी कहा जाता है।
कथा ---
          प्राचीन काल मे देवासुर संग्राम मे दिति के सभी दैत्य- पुत्र मारे गये।इससे दुखी दिति स्यमन्तपञ्चक क्षेत्र मे सरस्वती नदी के तट पर तपस्या करने लगी।सौ वर्षों तक अनुष्ठान करने के बाद उसने वसिष्ठ आदि महर्षियों से पुत्र-शोक-नाशक किसी व्रत के विषय मे पूछा।महर्षि वसिष्ठ ने मदन-द्वादशी-व्रत करने का निर्देश दिया।दिति ने महर्षियों के निर्देशानुसार व्रत किया।इस व्रत के प्रभाव से दिति के पति महर्षि कश्यप प्रकट हुए।दिति ने उनसे ऐसे पुत्र का वरदान मागा ; जो अमित पराक्रमी हो और इन्द्र का वध कर सके।महर्षि उसे इच्छित वर देकर अन्तर्धान हो गये।बाद मे दिति को उसी व्रत के प्रभाव से उनचास पुत्र ( मरुद्गण ) प्राप्त हुए।
विधि ---
          व्रती प्रातः स्नानादि करके श्वेत-चन्दनानुलिप्त ; वस्त्राच्छादित एवं चावलों से परिपूर्ण घट स्थापित करे।उसके समीप फल और गन्ने के टुकड़े रखे।कलश पर गुड़ भरा ताम्रपात्र रखकर उस पर रति और कामदेव का पूजन करे।दूसरे दिन घटदान और ब्राह्मण-भोजन के बाद स्वयं लवण-रहित भोजन करे।
         इसी प्रकार वर्ष भर प्रत्येक द्वादशी को व्रत करे।तेरहवें महीने मे घृतधेनु ; कामदेव की स्वर्ण प्रतिमा ; सवत्सा गौ ; शय्यादान आदि करे।बाद मे गोदुग्ध से निर्मित हवि और श्वेत तिल से हवन करे।
माहात्म्य ---
          इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य पापमुक्त होकर जीवन भर सुख ; समृद्धि ; पुत्र ; पौत्र आदि से युक्त रहता है।

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