मनोरथ द्वादशी व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी को किया जाता है।इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।इसीलिए इसको मनोरथ द्वादशी कहा जाता है।
कथा --
------ इस व्रत का वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था।इसी व्रत के प्रभाव से शुक्राचार्य ने धन और महर्षि धौम्य ने निर्विघ्न विद्या प्राप्त की थी।
विधि --
------ व्रती फाल्गुन शुक्ल एकादशी को उपवास करे।द्वादशी को रक्तपुष्प ; अक्षत ; गन्ध आदि से भगवान विष्णु का पूजन कर अपने मनोरथ-सिद्धि के लिए प्रार्थना करे।हवन आदि के बाद गाय के सींग धोये जल एवं हविष्यान्न ग्रहण करे।इसी प्रकार चार मास तक व्रत करे।फिर अग्रिम चार मास तक चमेली के पुष्प ; अक्षत आदि से पूजन कर कुशोदक का प्राशन करे और निवेदित नैवेद्य का भक्षण करे।अग्रिम चार माह तक जपापुष्प ; धूप ; कसार का नैवेद्य समर्पित करे।स्वयं भी गोमूत्र प्राशन एवं कसार भक्षण करे।प्रत्येक मास मे ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा से सन्तुष्ट करे।
वर्षान्त मे भगवान नारायण की स्वर्ण-प्रतिमा बनवा कर उसका विधिवत् पूजन करे।फिर उसका दान कर दे।बारह ब्राह्मणो को भोजन ; अन्न ; जलपूर्ण घट ; वस्त्र ; दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य ---
----------- इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।उसका जीवन धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है।
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