त्रिवर्गसप्तमी-व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी को किया जाता है।इसे करने से धर्म ; अर्थ और काम रूपी तीनो वर्गों की प्राप्ति होती है।इसीलिए इसे त्रिवर्ग सप्तमी कहा जाता है।
कथा --
-------
एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से किसी ऐसे सूर्य-व्रत के विषय मे पूछा ; जिससे मनोवाँछित फल की प्राप्ति हो सके।उस समय ब्रह्मा जी ने त्रिवर्ग सप्तमी व्रत का निर्देश दिया था।
विधि --
-------
व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास पूर्वक " हेलि " नामक सूर्य की विधिवत् पूजा करे।उसके बाद निम्नलिखित मंत्र का 108 बार पाठ करे --
हंस हंस कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव।
संसारार्णवमग्नानां त्राता भव दिवाकर।।
इसके बाद सूर्यदेव के चरणों मे तीन बार जलधारा अर्पित करे।इसी प्रकार चार महीने तक व्रत एवं पूजन करे।उसके बाद चार मास तक " मार्तण्ड " नाम से सूर्य-पूजन एवं गोमूत्र-प्राशन करे।तत्पश्चात् चार मास तक " भास्कर " नाम से सूर्य-पूजन एवं दुग्ध-प्राशन करे।प्रत्येक महीने दानादि से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करे।वर्षान्त मे पुराण-वाचन एवं कीर्तन का आयोजन करे।
माहात्म्य --
------------
इस व्रत एवं पूजन के प्रभाव से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।विशेषकर धर्म ; अर्थ और काम रूपी त्रिवर्गों की प्राप्ति अवश्य होती है।अन्त मे उसे सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
Monday, 1 February 2016
त्रिवर्गसप्तमी-व्रत
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment