सौभाग्य-शयन-व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है।
कथा -----
प्राचीन काल मे जब सभी लोक दग्ध हो गये तब समस्त प्राणियों का सौभाग्य एकत्रित होकर भगवान विष्णु के वक्षःस्थल मे स्थित हो गया।कालान्तर मे सृष्टि-रचना के समय शिव-लिंगाकार एक भयानक अग्निज्वाला प्रकट हुई।उसके ताप से वह सौभाग्य गलित होकर नीचे गिरा।उसका आधा भाग दक्ष प्रजापति ने पी लिया।उसी के अंश से सती नामक कन्या का प्रादुर्भाव हुआ।बाद मे सती का विवाह शिव जी के साथ हुआ।
सौभाग्य-पुञ्ज का आधा भाग पृथ्वी पर गिरा।उससे आठ पदार्थ उत्पन्न हुए ; जो ईख ; पारा ; सेम ; राजि धान ; गोक्षीर ; कुसुम्भ-पुष्प ; कुंकुम और नमक के रूप मे प्रसिद्ध हुए।इन्हें सौभाग्याष्टक कहा जाता है।
दक्षकन्या सती ने अपनी सुन्दरता से तीनो लोकों को पराजित कर दिया था।इसीलिए उन्हें " ललिता " कहा जाता है।उनका विवाह चैत्र शुक्ल तृतीया को भगवान शिव जी के साथ सम्पन्न हुआ।इसीलिए इस दिन सती सहित शिव जी का पूजन किया जाता है।
विधि --
व्रती तिल मिश्रित जल से स्नान करके गौरी एवं चन्द्रशेखर-शिव की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करे।फिर चन्दन मिश्रित जल ; अक्षत ; गन्ध ; पुष्प आदि से उनका विधिवत् पूजन करे।उनके पूर्वोक्त सौभाग्याष्टक रख कर " उमामहेश्वरौ प्रीयेताम् " कहे।उसके बाद गोश्रृंगोदक का प्राशन कर भूशयन करे।दूसरे दिन ब्राह्मण-दम्पति की पूजा कर उन्हें प्रतिमा सहित सौभाग्याष्टक दान करे और " ललिता प्रीयताम् " कहे।इसी प्रकार वर्ष भर प्रत्येक मास की तृतीया को पूजन आदि करना चाहिए।वर्षान्त मे शय्या पर उमामहेश्वर की स्वर्म प्रतिमा ; गौ तथा वृषभ की प्रतिमा का पूजन कर दान कर दे।
माहात्म्य ---
इस व्रत को करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।सती जी प्रसन्न होकर अपने भक्त को भोग और मोक्ष दोनो प्रदान कर देती हैं।
Friday, 26 February 2016
सौभाग्य-शयन-व्रत
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