वसन्तोत्सव या होली महोत्सव होलिका-दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है।इस समय शीत की विदाई एवं वसन्त का आगमन हो जाता है।पृथ्वी ; जल ; वायु ; अग्नि ( सूर्य ) एवं आकाश रूपी पञ्चतत्वों का स्वरूप बहुत मनमोहक एवं आनन्ददायक हो जाता है।प्रकृति की छटा भी दर्शनीय हो जाती है।बालियों से परिपूर्ण फसलें चारों ओर लहलहाती रहती हैं।इस सम्पूर्ण दृश्य को देखकर प्रत्येक व्यक्ति का मन आनन्द से भर जाता है।
होली एक सामाजिक पर्व है।इसे रंगों का पर्व माना जाता है।प्रायः सभी लोग हर प्रकार का भेद-भाव भुलाकर पूरे उत्साह के साथ इस पर्व का आनन्द लेते हैं।एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर गले मिलते हैं।कनिष्ठ लोग अपने गुरुजनो को प्रणाम कर शुभाशीष प्राप्त करते हैं।परस्पर रंग डालकर आनन्दित होते हैं।कुछ लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर संगीत सहित होली के गीत गाते हैं।स्थान स्थान पर हास-परिहास की संगोष्ठियों का आयोजन होता है।उसमे भंग मिश्रित शर्बत पिलाया जाता है।
इस दिन प्रायः सभी घरों मे विविध प्रकार के सुस्वादु व्यञ्जनों का निर्माण होता है।इनमे गुझिया ; मालपुआ आदि की प्रधानता रहती है।इस दिन स्वपच स्पर्श ; कुसुम-प्रासन ; साभ्यंग-स्नान ; रति-काम महोत्सव आदि भी पूर्ण उत्साह के साथ मनाये जाते हैं।
Saturday, 6 February 2016
वसन्तोत्सव ( होली महोत्सव )
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