Wednesday, 3 February 2016

सुकृतद्वादशी-व्रत

           सुकृतद्वादशी-व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी को किया जाता है।यह व्रत पापों का क्षय एवं सुकृतों ( पुण्यों ) का संचार करने वाला है।इसीलिए इसको सुकृतद्वादशी व्रत कहा जाता है।

कथा ---
------     प्राचीन काल मे विदिशा नगरी मे सीरभद्र नामक एक वैश्य रहता था।वह सदैव धनोपार्जन एवं परिवार के पालन-पोषण मे ही लगा रहता था।उसने कभी दान ; धर्म आदि शुभ कार्य नहीं किया।अतः मृत्यु के बाद वह प्रेतयोनि मे विन्ध्यारण्य मे निवास करने लगा।वहीं विपीत मुनि से भेंट हो गयी।उसने मुनिवर से अपने उद्धार का उपाय पूछा।मुनि ने बताया कि तुमने दस जन्म पूर्व सुकृतद्वादशी का व्रत किया था।उसी के प्रभाव से अब तक तुम्हारे पापों का अधिकाँश भाग समाप्त हो चुका है।अभी थोड़ा अंश शेष है।अब शीघ्र ही तुम्हें उत्तम गति की प्राप्ति होगी।थोड़े दिनो बाद उसका मोक्ष हो गया।

विधि --
-------      व्रती फाल्गुन शुक्ल एकादशी को उपवास पूर्वक "ऊँ नमो नारायणाय " मंत्र का जप करे।दूसरे दिन द्वादशी को इसी प्रकार भगवान मधुसूदन का विधिवत् पूजन करे।यह व्रत एक वर्ष का है।प्रत्येक चार महीने पर पारणा करे।प्रथम पारणा मे रजत ; ताम्र अथवा मिट्टी के पात्र मे जौ भर कर दान दे।दूसरी पारणा मे घृत और तीसरी पारणा मे तिलों का दान करे।वर्षान्त मे भगवान विष्णु की स्वर्ण -प्रतिमा का पूजन कर उसे वस्त्र ; दक्षिणा एवं गौ के साथ दान कर दे।

माहात्म्य ---
-----------       इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।उसके पुण्यों का संचार होने लगता है।उसे यमराज का दर्शन नही करना पड़ता है।वह स्वर्गलोक को जाता है।

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