किसी भी मास के कृष्ण अथवा शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बुधवार पड़ने पर बुधाष्टमी होती है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे धीर नामक ब्राह्मण के कौशिक नामक पुत्र और विजया नामक पुत्री थी।उसके पास धनद नामक एक बैल था।एक दिन कौशिक उस बैल को चराने के लिए जंगल की ओर ले गया।मार्ग मे गंगा नदी थी।कौशिक उसी मे स्नान करने लगा।उसी बीच चोर आये और बैल को चुरा ले गये।नहाने के बाद कौशिक बैल को ढूँढने लगा।उसने एक सरोवर के तट पर देवलोक की अनेक स्त्रियों को देखा।वह भूख से पीड़ित था।उसने स्त्रियों से भोजन माँगा।स्त्रियों ने कहा कि आज बुधाष्टमी है।अतः आप भी व्रत करके भोजन कीजिए।कौशिक ने वैसा ही किया।
इधर धीर भी बैल ढूँढने निकला।उसे बैल मिल गया।सभी लोग घर आ गये।कुछ दिनो बाद धीर की मृत्यु हुई और वह यमलोक गया।परन्तु कौशिक बुधाष्टमी व्रत के पुण्यस्वरूप अयोध्या का राजा बना।एक दिन वह शिकार करने के लिए वन मे गया।वहाँ अपने माता-पिता को नरक से मुक्त कराने का उपाय सोचने लगा।उसी समय यमराज जी प्रकट हुए।उन्होने बताया कि बुधाष्टमी के दो व्रतों का फल प्रदान करने पर वे नरक से मुक्त हो जायेंगे।कौशिक ने उन्हें दो व्रतों का फल प्रदान किया ; जिससे उसके माता-पिता स्वर्ग चले गये।तब विजया ने भी इस व्रत को किया।
विधि --
------ व्रती बुधाष्टमी को प्रातः स्नानादि करके दो अँगुलियों को छोड़कर आठ मुट्ठी चावल का भात बनाये।उसे कुश युक्त आम्रपल्लव के दोने मे रख दे।फिर कुलाम्बिका सहित बुधदेव का विधिवत् पूजन करे।बुधाष्टमी व्रत की कथा सुने।उसके बाद एक समय भोजन करे।बाद मे ब्राह्मणों को ककड़ी ; चावल दक्षिणा प्रदान कर सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत को करने से व्यक्ति सदैव धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है।उसे कभी भी सम्पत्ति का अभाव नहीं होता है।उसे भोग और मोक्ष दोनो की प्राप्ति होती है।
Tuesday, 2 February 2016
बुधाष्टमी-व्रत
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