देवी उपासना के लिए नवरात्र का समय सर्वोत्तम माना गया है।शास्त्रों मे दुर्गा-पूजन के लिए अनेक विधियों का उल्लेख किया गया है।किन्तु सामान्य रूप से देवी उपासना के लिए देवी जी की विधिवत् पूजा करने के बाद निम्नलिखित क्रियायें करनी चाहिए ---
पाठ --
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1-- यदि समय ; सुविधा एवं सामर्थ्य हो तो प्रतिदिन श्री दुर्गासप्तशती का सम्पूर्ण पाठ किया जाय।
2-- सम्पूर्ण पाठ करने की सामर्थ्य न हो तो एक दिन मे केवल मध्यम चरित्र का और दूसरे दिन शेष दो चरित्रों का पाठ करना चाहिए।
3-- यदि यह भी न हो सके तो प्रथम दिन प्रथम अध्याय ; दूसरे दिन द्वितीय एवं तृतीय अध्याय ; तीसरे दिन चतुर्थ अध्याय ; चौथे दिन पञ्चम-षष्ठ-सप्तम-अध्याय ; पाँचवें दिन नवम-दशम अध्याय ; छठवें दिन एकादश अध्याय ; सातवें दिन द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय का पाठ करके सात दिनों मे पाठ पूरा किया जाय।
4-- यदि संस्कृत पढ़ने मे असमर्थ हों तो प्रतिदिन श्रीदुर्गा चालीसा का पाठ किया जाय।
5-- यदि अनपढ़ हों तो केवल माता जी का नाम-स्मरण किया जाय।
व्रत --
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नवरात्र मे व्रत का बहुत अधिक महत्व है।अतः सामर्थ्य हो तो पूरे नवरात्र भर उपवास या फलाहार किया जाय।यदि यह संभव न हो तो सप्तरात्र ; पञ्चरात्र ; त्रिरात्र ; द्विरात्र ; अथवा एकरात्रि व्रत किया जाय।
प्रतिपदा से आरम्भ कर सप्तमी तक व्रत करने से सप्तरात्र व्रत सम्पन्न होता है।पञ्चमी को एकभुक्त ; षष्ठी को नक्तव्रत ; सप्तमी को अयाचित व्रत ; अष्टमी को उपवास तथा नवमी को पारणा करने से पञ्चरात्र व्रत सम्पन्न होता है।सप्तमी ; अष्टमी और नवमी को एकभुक्त रहने से त्रिरात्र व्रत पूरा होता है।नवरात्र के आदि और अन्त इन दो दिनों मे व्रत करने से द्विरात्र व्रत सम्पन्न होता है।आदि अथवा अन्त मे से किसी एक दिन व्रत करने से एकरात्रि व्रत होता है।
कुमारी-पूजन --
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देवी पूजन मे कुमारी पूजन नितान्त आवश्यक है।अतः नवरात्र मे प्रतिदिन नौ कुमारियों का पूजन करके उन्हें मिष्टान्न भोजन एवं दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए।यदि यह न हो सके तो अन्तिम दिन नौ कुमारियों के पूजन एवं भोजन की व्यवस्था करें।कन्यायें दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की होनी चाहिए।
Thursday, 11 February 2016
नवरात्र मे देवी उपासना-विधि
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