मनोरथ पूर्णिमा व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को किया जाता है।इसे करने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।इसीलिए इसे मनोरथ पूर्णिमा व्रत कहा जाता है।
कथा --
------- इस व्रत का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से किया था।
विधि --
------- व्रती प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर संकल्प पूर्वक लक्ष्मी सहित भगवान जनार्दन का पूजन करे।दिन भर उपवास रखे।रात्रि मे चन्द्रोदय होने पर लक्ष्मी और नारायण की भावना कर चन्द्रार्घ्य प्रदान करे।फिर तैल-लवण रहित भोजन करे।इसी प्रकार चार मास तक व्रत एवं पूजन कर पञ्चगव्य का प्राशन करे।अग्रिम चार माह तक श्री सहित श्रीधर का पूजन और चन्द्रार्घ्य प्रदान कर कुशोदक का प्राशन करे।अग्रिम चार मास तक भूति सहित केशव का पूजन और चन्द्रार्घ्य प्रदान कर सूर्य-तप्त जल का प्राशन करे।प्रत्येक मास अथवा वर्षान्त मे ब्राह्मणो को भोजन एवं दक्षिणा से सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य --
------------ इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।उसे कभी भी इष्ट-वियोग नही होता है।अन्त मे वह दिव्यलोक को प्राप्त करता है।
Wednesday, 3 February 2016
मनोरथ पूर्णिमा व्रत
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