Wednesday, 10 February 2016

नवरात्र

           नवरात्र का अर्थ है -- नवानां रात्रीणां समाहारः -- अर्थात् नव रात्रियों का समूह।अतः स्पष्ट है कि नवरात्र पर्व नौ रात्रियों तक रहता है।
           सामान्य रूप से वर्ष मे चार नवरात्र होते हैं।ये चैत्र ; आषाढ़ ; आश्विन तथा माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक होते हैं।परन्तु चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों का विशेष महत्व है।स्वयं भगवती दुर्गा ने भी शरत्कालीन आश्विन मास एवं वार्षिकी ( वर्षारम्भ वाली )  अर्थात् चैत्र मास के नवरात्र मे महापूजा करने की बात कही है --
    शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
     तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः।।
           देवी भागवत् मे भी कहा गया है कि शरत् एवं वसन्त नामक दोनों ऋतुएँ संसार मे प्राणियों के लिए दुर्गम हैं।अतः आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्तियों को बड़े यत्न के साथ नवरात्र व्रत करना चाहिए।नवरात्र पर्व नौ दिनो एवं नौ रात्रियों तक रहता है।इसका प्रमुख कारण यह है कि मातेश्वरी दुर्गा के भी नौ स्वरूप हैं ; जो शैलपुत्री ; ब्रह्मचारिणी ; चन्द्रघण्टा ; कूष्माण्डा ; स्कन्दमाता ; कात्यायनी ; कालरात्रि ; महागौरी और सिद्धिदात्री नाम से प्रसिद्ध हैं।नवरात्र मे प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि पर्यन्त क्रमशः इन्हीं स्वरूपों का पूजन होता है।
           देवी भागवत के अनुसार वसन्त एवं शरद् नामक दोनो ऋतुएँ सभी जीवों के लिए यमदंष्ट्रा कही गयी हैं।ये ऋतुएँ बहुत भयानक ; रोगकारक एवं विनाशकारिणी हैं।अतः बुद्धिमान व्यक्तियों को चैत्र एवं आश्विन मास मे भक्तिपूर्वक चण्डिका देवी का पूजन अवश्य करना चाहिए।
           इसके लिए किसी वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन पर विविधायुध-धारिणी चतुर्भुजी देवी की प्रतिमा स्थापित करे।यह प्रतिमा रत्नाभूषणों से युक्त ; मुक्ताहार-अलंकृत ; दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित ; शुभ लक्षणा एवं सौम्याकृति युक्त होनी चाहिए।वे कल्याणमयी भगवती शंख-चक्र-गदा-पद्म-धारिणी एवं सिंहवाहिनी अथवा अष्टादशभुजी सनातनी देवी होनी चाहिए।भगवती - प्रतिमा के अभाव मे नवार्णयुक्त यन्त्र को ही पीठ पर स्थापित करना चाहिए।
            देवी-पूजन मे सर्वप्रथम उपवास ; एकभुक्त या नक्तव्रत का संकल्प लेकर प्रार्थना करे -- हे माता ! मै सर्वश्रेष्ठ नवरात्र-व्रत करूँगा।हे देवि जगदम्बे ! आप मेरी सहायता करें।इसके बाद मन्त्रोच्चार पूर्वक चन्दन ; अगरु ; कपूर ; मन्दार ; करंज ; अशोक ; चम्पा ; कनेर ; मालती ; ब्राह्मी आदि सुगंधित पुष्पों ; बिल्वपत्रों ; धूप ; दीप ; नैवेद्य आदि से भगवती जगदम्बा का पूजन करे।इस प्रकार प्रतिदिन देवी का त्रिकाल-पूजन ; संकीर्तन ; स्तोत्रपाठ ; सप्तशती पाठ ; भूशयन आदि नियमों का पालन करे।प्रतिदिन कुमारी पूजन भी करे अथवा अन्तिम दिन कुमारी पूजन एवं हवन आदि क्रियायें सम्पन्न करनी चाहिए।
           नवरात्र मे व्रत एवं पूजन का बहुत अधिक महत्व है।संसार मे जितने भी दान एवं व्रत हैं उनमे से कोई भी नवरात्र व्रत के समान नही है।यह व्रत धन-धान्य ; सुख-सौभाग्य ; पुत्र-पौत्र ; विद्या-बुद्धि ; आयु-आरोग्य ; भोग-मोक्ष आदि सब कुछ प्रदान करने वाला है।अतः प्रत्येक आस्तिक एवं धर्मप्राण व्यक्ति को चाहिए कि वे दोनो नवरात्रों मे देवी की विधिवत् उपासना करें।इससे मातेश्वरी दुर्गा की अनुकम्पा अवश्य प्राप्त होती है।

No comments:

Post a Comment