पापमोचनी एकादशी व्रत चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है।इस व्रत को करने से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है।इसलिए इसे पापमोचनी एकादशी कहा जाता है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे " मेधावी मुनि " चैत्ररथ वन मे साधना करते थे।एक बार मञ्जुघोषा नामक अप्सरा ने उन्हें मोहित करने की योजना बनाई।वह उनके आश्रम से दो मील दूरी पर रुक गयी और वीणा बजाते हुए मधुर गीत गाने लगी।मुनिवर उसी ओर जा रहे थे।गीत सुनते ही वे अप्सरा के पास खिंचे चले गये।अप्सरा ने उनका आलिंगन कर अपने वश मे कर लिया।मेधावी मुनि वर्षों तक उसके साथ रमण करते रहे।
एक दिन मञ्जुघोषा ने देवलोक जाने के लिए उनसे आज्ञा माँगी।उस समय मुनि को लगा कि अभी एक रात्रि ही व्यतीत हुई है।अतः उन्होंने कहा कि प्रातःकालीन संध्या के बाद चली जाना।अप्सरा ने कहा कि अब तक न जाने कितनी संध्यायें बीत गयी हैं।यह सुनकर मुनि चकित हो गये।हिसाब लगाने पर पता चला कि सत्तावन वर्ष व्यतीत हो गये हैं।अब मुनिवर को पता चला कि यह अप्सरा उनकी तपस्या भंग करने आई है।उन्होंने क्रुद्ध होकर उसे पिशाची होने का शाप दे दिया।इसे सुनकर अप्सरा अनुनय विनय करने लगी।मुनि को दया आ गयी।उन्होंने कहा कि तुम चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करो।वह पापमोचनी एकादशी है।उसी से तुम्हारा उद्धार होगा।बाद मे दोनो ने उसी का व्रत किया ; जिसके प्रभाव से दोनो पापमुक्त हो गये।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर अन्य एकादशियों की भाँति उपवास एवं विष्णु-पूजन करे।दूसरे दिन विधिवत पारणा करे।
माहात्म्य --
----------- यह व्रत बहुत पुण्यकारी है।जो व्यक्ति इसका व्रत करता है ; वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।ब्रह्महत्या ; स्वर्ण चोरी ; सुरापान ; गुरुपत्नी गमन सदृश घोर पाप भी इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं।
Monday, 8 February 2016
पापमोचनी एकादशी व्रत
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