अशोक पूर्णिमा व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को किया जाता है।इस व्रत को करने से मनुष्य को कभी कोई शोक नही होता है।इसीलिए इसे अशोक पूर्णिमा व्रत कहा जाता है।
कथा --
------ पृथ्वी जब पाताल मे चली गयी थी तब उसने इस व्रत को किया था।इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो गये और उन्होने वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किया था।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर मिट्टी की वेदी बनाये।उस पर भगवान भूधर और अशोका नाम से धरणी देवी का आवाहन-पूजन करे।पूजनोपरान्त शोकमुक्त होने तथा कामना-पूर्ति के लिए प्रार्थना करे।दिन भर उपवास के बाद रात्रि मे चन्द्रार्घ्य प्रदान कर तैल-लवण रहित भोजन करे।इसी प्रकार चार मास तक व्रत करे।अग्रिम चार मास तक मेदिनी नाम से तथा उसके बाद के चार मास तक वसुन्धरा नाम से पूजन करे।वर्षान्त मे गौ ; भूमि ; वस्त्र आदि प्रदान कर ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत को करने से मनुष्य हर प्रकार के शोक से मुक्त हो जाता है।उसे भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त हो जाती है।
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