शीतलाष्टमी-व्रत चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी को किया जाता है।इसमे शीतला देवी की पूजा की जाती है।इसलिए इसे शीतलाष्टमी कहा जाता है।
कथा --
------ प्राचीन काल मे लोगों ने शीतला माता की पूजा करने के बाद उन्हें स्वादिष्ट ; ताजा और उष्ण भोज्य पदार्थों का भोग लगाया।उष्ण पदार्थ खाने से माता जी को बहुत अधिक गर्मी का अनुभव हुआ।वे एक कुम्हार के घर गयीं और उसकी गीली मिट्टी मे विश्राम कर शीतलता प्राप्त करने का अनुरोध किया।कुम्हार ने वैसी ही व्यवस्था कर दी।गर्मी शान्त होने के बाद माता ने भोजन माँगा।उस निर्धन के पास बासी भोजन था।उसने उसे ही समर्पित कर दिया।माता जी ने शीतल और बासी आहार ग्रहण किया और कहा कि मै उष्ण भोजन कराने वालों को दण्ड अवश्य दूँगी।उस दण्ड से केवल तू ही बचेगा।
माता के प्रकोप से कुम्हार को छोड़कर शेष सभी ग्राम-वासियों को गर्मी से फफोले ( चेचक ) पड़ गये।व्याकुल ग्रामीणों ने सोचा कि कुम्हार ने ही कोई जादू टोना किया है।कुम्हार ने सम्पूर्ण वृत्तान्त बताया।सब लोगों ने माता जी से क्षमा प्रार्थना की।तब उन्होने बताया कि शीतलाष्टमी को मुझे बासी भोजन समर्पित करने तुम लोगों का कष्ट दूर होगा।बाद मे सब ने वैसा ही किया।तब से उन्हें बासी भोजन चढ़ने लगा।
विधि --
----- व्रती प्रातः स्नानादि करके संकल्प पूर्वक गन्धाक्षत आदि से शीतला देवी का पूजन करे।फिर एक दिन पूर्व का बना हुआ बासी भोजन का भोग लगाये।दिन भर उपवास पूर्वक शीतला-स्तोत्र का पाठ एवं रात्रि-जागरण करे।माता को निवेदित भोज्य पदार्थ को ही प्रसाद रूप मे ग्रहण करे।
माहात्म्य ---
------------ इस दिन व्रत एवं देवी-पूजन करने से मनुष्य शीतला-जन्य सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।इन कष्टों मे चेचक प्रमुख है।जिस घर मे चेचक का प्रकोप हो वहाँ शीतला-स्तोत्र का पाठ करने से अविलम्ब लाभ होता है।
Sunday, 7 February 2016
शीतलाष्टमी-व्रत
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