गौरी-व्रत चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ करके चैत्र शुक्ल द्वितीया तक किया जाता है।इसमे गौरी-पूजन की प्रधानता होने के कारण इसे गौरी व्रत कहा जाता है।
विधि --
------ व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर होली की भस्म तथा काली मिट्टी के मिश्रण से माता गौरी की प्रतिमा का निर्माण करे।उसके बाद गन्ध ; अक्षत ; पुष्प ; धूप ; दीप ; नैवेद्य आदि से उनका पूजन करे।इसे विवाहिता एवं कन्या दोनो कर सकती हैं।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत को विवाहिता स्त्री करे तो उसे अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।कन्या करे तो मनोवाँछित वर की प्राप्ति होती है।
Friday, 5 February 2016
गौरी-व्रत
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