सनातन परम्परा मे युगादि तथियों की विशिष्ट महत्ता है।भविष्य पुराण के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया को सत्ययुग का ; कार्तिक शुक्ल नवमी को त्रेतायुग का ; भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी को द्वापर युग का और माघ शुक्ल पूर्णिमा को कलियुग का आरम्भ हुआ था।इसीलिए इन तिथियों को युगादि तिथियाँ कहा जाता है।इन तिथियों मे जप ; तप ; दान आदि का विशेष महत्व है।
विधि --
------ वैशाख शुक्ल तृतीया को प्रातः स्नानादि करके लक्ष्मी सहित भगवान नारायण का पूजन करना चाहिए।इसमे अपनी सामर्थ्य के अनुसार गन्ध ; पुष्प ; अक्षत आदि के साथ वस्त्राभूषण आदि भी समर्पित करना चाहिए।इसके बाद सवत्सा लवण-धेनु का दान करना चाहिए।ब्राह्मणों को भोजन ; शय्या ; आसन ; वस्त्राभूषण आदि से सन्तुष्ट करे।उसके पश्चात् बन्धु-बान्धवों सहित स्वयं भी भोजन करे।
कार्तिक शुक्ल नवमी को विधि-विधान पूर्वक उमा सहित भगवान नीलकण्ठ शंकर की पूजा करे।इसमे तिल-धेनु का दान करने का विधान है।शेष क्रियायें पूर्ववत् करनी चाहिए।
भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी को पितृतर्पण ; ब्राह्मण भोजन एवं सवत्सा प्रत्यक्ष गोदान करे।शेष क्रियायें पूर्ववत् ही करनी चाहिए।
माघ पूर्णिमा को गायत्री सहित भगवान ब्रह्मा जी का पूजन करे।उसके बाद फल ; स्वर्ण सहित नवनीत-धेनु का दान करे।शेष क्रियायें पूर्ववत् ही करनी चाहिए।
माहात्म्य --
----------- इन तिथियों मे दिया गया दान अक्षय होता है।न्यूनतम दान देने पर भी अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति होती है।इस दिन जप तप करने से मनुष्य के कायिक ; वाचिक और मानसिक सभी पापों का विनाश हो जाता है।दान देने वाले को अन्त मे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
Thursday, 4 February 2016
युगादि तिथियाँ
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