Saturday, 9 January 2016

प्रयाग-माहात्म्य

           प्रयाग का आधुनिक नाम इलाहाबाद है।यह उत्तर प्रदेश राज्य मे स्थित है।यहाँ ब्रह्मा जी ने सृष्टि के आरम्भ मे प्रकृष्ट यज्ञ किया था।इसीलिए इसका नाम प्रयाग पड़ गया।पौराणिक मान्यता के अनुसार ये समस्त तीर्थों के अधिपति हैं।इसलिए इन्हें तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है।सातों मोक्षदायिनी पुरियाँ ( अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका और द्वारका ) इनकी महारानियाँ हैं।यहाँ गङ्गा ; यमुना और अदृश्य सरस्वती का पावन संगम है।गंगा और यमुना की धाराओं के कारण पूरा प्रयाग क्षेत्र तीन भागों मे विभक्त है।इन तीनो भागों को अग्निस्वरूप यज्ञवेदी माना जाता है।इनमे से गंगापार को आह्वनीय अग्नि ; यमुनापार को दक्षिणाग्नि तथा दोनो नदियों के मध्यवर्ती भाग को गार्हपत्याग्नि के रूप मे माना जाता है।
           प्रयाग के निवासी अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं क्योंकि ब्रह्मा आदि समस्त देवगण उनकी सुरक्षा करते हैं।यहाँ साठ हजार धनुर्धर वीर गंगा की और सात अश्वों से युक्त दिव्य रथ पर आरूढ़ भगवान भास्कर अपनी पुत्री यमुना की रक्षा करते हैं।इन्द्रदेव प्रयाग-रक्षण हेतु विशेष रूप से संलग्न रहते हैं।समस्त देवताओं से युक्त भगवान विष्णु जी सम्पूर्ण प्रयाग मण्डल की रक्षा करते हैं।संगम के समीप स्थित अक्षयवट की सुरक्षा स्वयं त्रिशूलधारी शिव जी करते हैं।इस प्रकार यह पतित पावन क्षेत्र विभिन्न देवों द्वारा पूर्ण सुरक्षित है।
           तीर्थराज प्रयाग की महिमा अवर्णनीय है।संसार मे जितने भी तीर्थ हैं ; उन सबमे तीर्थराज प्रयाग का नाम सर्वोपरि है।इन्हे समस्त तीर्थों के पुण्यफलों का प्रदाता एवं धर्मार्थकाममोक्ष रूप पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का साधन माना जाता है ----

प्रथमं तीर्थराजं तु प्रयागाख्यं सुविश्रुतम् ।
कामिकं सर्वतीर्थानां धर्मकामार्थमोक्षदम् ।।
           तीर्थराज प्रयाग का नाम स्मरण करने से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।वह पूर्ण निष्पाप होकर मोक्षपद का अधिकारी बन जाता है।इनके दर्शन ; नाम-संकीर्तन अथवा यहाँ की मिट्टी का स्पर्श करने से ही मनुष्य पाप-मुक्त हो जाता है।यहाँ पाँच कुण्ड हैं।इन्हीं कुण्डों के बीच मे गंगा जी प्रवाहित हो रही हैं।इसलिए प्रयाग मे प्रवेश करते ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।गंगा तो वैसे ही पतित पावनी हैं।इनका नाम स्मरण करने से ही मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है।यदि कोई प्रयाग आकर गंगा का दर्शन ; स्नान और जलपान कर ले तो वह यावज्जीवन मंगलमय स्थिति मे रहता है।उसकी सात पीढ़ियाँ तर जाती हैं।जो व्यक्ति पूर्ण संयम नियम के साथ संगम मे स्नान करता है ; वह पापमुक्त होकर समस्त मनोरथों को प्राप्त कर लेता है।
           यदि कोई रुग्ण ; दीन-दुःखी अथवा वृद्ध होकर गंगा-यमुना के पावन संगम मे प्राण-त्याग करता है ; वह स्वर्णिम कान्ति से युक्त सूर्य सदृश तेजस्वी विमान द्वारा स्वर्गलोक को जाता है।जो व्यक्ति अक्षय वट के समीप प्राण त्यागता है ; वह सभी लोकों का अतिक्रमण कर रुद्रलोक को जाता है।जो व्यक्ति संगम मे मांगलिक कार्यों ; देवपूजन अथवा पितरों के उद्देश्य से गोदान करता है ; वह उस गाय के जितने रोयें होते हैं ; उतने सहस्र वर्षों तक स्वर्ग मे सानन्द निवास करता है।
           अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह जीवन मे कम से कम एक बार प्रयाग की यात्रा अवश्य करे।जो व्यक्ति अपने पुत्रों को संगम मे स्नान ; जलपान एवं उनके हाथों गोदान कराता है ; वह सपरिवार उत्तम गति को प्राप्त करता है।अतः गंगा ; यमुना और सरस्वती के जिस पावन संगम मे स्नान करने से मनुष्य परम-पद को प्राप्त करता है ; उस तीर्थराज प्रयाग की जय हो ---

ब्राह्मीनपुत्रीत्रिपथास्त्रिवेणी-
          समागमेनाक्षतयोगमात्रान् ।
यत्राप्लुतान् ब्रह्मपदं नयन्ति
           स तीर्थराजो  जयति  प्रयागः ।।

1 comment:

  1. आपने इस विषय को गहराई से खोजा है और मुझे इसकी सामर्थ्यों की पहचान हुई है। मेरा यह लेख भी पढ़ें विष्णु प्रयाग की पौराणिक मान्यताएं

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