काम व्रत -----
इस व्रत को किसी त्रयोदशी को किया जाता है।इसमे व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर एक वर्ष तक के लिए नक्त व्रत का संकल्प ले।फिर संयम नियम पूर्वक वर्ष भर व्रत करे।वर्ष के अन्त मे पारणा करे।पारणा के दिन दो वस्त्र ; स्वर्ण-निर्मित अशोक वृक्ष तथा दक्षिणा ब्राह्मण को प्रदान करे।दान देते समय " प्रद्युम्नः प्रीयताम् " कहे।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य हर प्रकार के शोकों से मुक्त हो जाता है।वह सर्वविध सुखमय जीवन व्यतीत कर अन्त मे विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
शिव व्रत -----
भगवान शिव जी को प्रसन्न कर उनकी असीम अनुकम्पा प्राप्त करने के उद्देश्य से यह व्रत बहुत उत्तम है।इस व्रत को आषाढ़ मे आरम्भ करके चार मास तक किया जाता है।इसमे व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह आषाढ़ मे प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।इन चार महीनों तक नाखून न काटे।साथ ही बैगन न खाये।व्रत के अन्त मे कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी ब्राह्मण को घृत और मधु से भरे हुए घट के साथ स्वर्ण-निर्मित बैगन का दान करे।इस व्रत के प्रभाव से भक्त को रुद्रलोक की प्राप्ति होती है।
पञ्च व्रत -----
यह भी बहुत पुण्यदायक व्रत है।इस व्रत को किसी पूर्णिमा तिथि को किया जाता है।व्रती प्रातः स्नान आदि नित्यकर्म करने के बाद एकभुक्त व्रत का संकल्प ले।फिर चन्दन से पूर्णिमा की मूर्ति बनाकर उसका विधिवत् पूजन करे।इसके बाद पाँच घड़ों मे दूध ; दही ; घृत ; मधु और श्वेत शर्करा ( चीनी ) पृथक्-पृथक् भरे।तत्पश्चात् इन पाँचों घड़ों को पाँच ब्राह्मणों को दान कर दे।यह व्रत बहुत महत्त्व पूर्ण एवं शुभ फलदायक है।जो व्यक्ति इस व्रत को करता है ; उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
सौभाग्य व्रत -----
यह भी बहुत उत्तम व्रत है।इसमे गौरी माता को सन्तुष्ट करके उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।गौरी जी तृतीया तिथि की स्वामिनी हैं।इसलिए इस व्रत को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आरम्भ किया जाता है।इसमे वर्ष भर तक प्रत्येक तृतीया को नमक नहीं खाया जाता है।व्रती वर्ष भर के बाद सपत्नीक ब्राह्मण की पूजा करे।फिर उन्हें गृह और गृहस्थ जीवन की अन्य उपयोगी वस्तुयें तथा शय्या का दान करे।दान देते समय " भवानी प्रीयताम् " कहे।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को उत्तम सौभाग्य की प्राप्ति होती है।वह पूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत करता हुआ अन्त मे गौरीलोक को प्राप्त करता है।
सारस्वत व्रत ----
इस व्रत को किसी मास के शुभ दिन से आरम्भ कर एक वर्ष तक किया जाता है।व्रती प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।इसमे सन्ध्या के समय एक वर्ष तक मौन व्रत किया जाता है।व्रत के अन्त मे पारणा करनी चाहिए।उस दिन किसी ब्राह्मण को घृत-कुम्भ ; दो वस्त्र तथा घण्टा का दान करना चाहिए।इस व्रत के प्रभाव से व्रती को विद्या एवं सुन्दर स्वरूप की प्राप्ति होती है।वह सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद अन्त मे सरस्वती लोक को प्राप्त करता है।
Friday, 9 September 2016
प्रकीर्ण व्रत --2
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