Thursday, 1 September 2016

एकादशियों के भेद -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           सामान्य रूप से कुल छब्बीस एकादशियाँ होती हैं।बारह महीनों के दोनों पक्षों की एकादशियों का योग चौबीस हुआ।इसमे मलमास के दोनों पक्षों की एकादशियों को मिलाने से उनकी संख्या छब्बीस हो जाती है।
अन्य भेद ---
         उपर्युक्त छब्बीस एकादशियाँ ही विभिन्न योगों के कारण निम्नलिखित छः प्रकार की होती हैं ---
1-- त्रिस्पृशा          2-- पक्षवर्धिनी
3-- जया               4-- विजया
5-- जयन्ती           6-- पापनाशिनी
त्रिस्पृशा एकादशी ----
           महीने के किसी भी पक्ष मे जब एक ही दिन एकादशी ; द्वादशी और त्रयोदशी का योग हो तब त्रिस्पृशा एकादशी होती है।इसका अभिप्राय यह है कि सूर्योदय काल मे थोड़ी देर तक एकादशी रहे ; उसके बाद द्वादशी लग जाय।वह द्वादशी भी दूसरे दिन के सूर्योदय के पूर्व ही रात्रि के चतुर्थ प्रहर मे समाप्त हो जाय और त्रयोदशी लग जाय तब त्रिस्पृशा होती है।इसमे एक ही दिन ( एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच ) एकादशी ; द्वादशी और त्रयोदशी तीनों का स्पर्श हो जाता है।इसलिए इसको त्रिस्पृशा एकादशी कहा जाता है।
कथा ---- एक बार गंगा जी ने भगवान हृषीकेश से निवेदन किया -- प्रभुवर ! ब्रह्महत्या आदि करोड़ो पाप करने वाले मनुष्य भी मेरे जल मे स्नान करते हैं।उनके पापों से मेरा शरीर कलुषित हो गया है।अतः मेरे पातक को दूर करने का उपाय बताने की कृपा करें।उस समय भगवान ने उन्हें त्रिस्पृशा एकादशी का व्रत करने का निर्देश किया था।
विधि --- व्रती प्रातः स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर कलशस्थापन पूर्वक भगवान दामोदर की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करे।उन्हें विधिवत् स्नान कराये तथा वस्त्रोपवस्त्र ; यज्ञोपवीत ; चन्दन ; पुष्प ; तुलसीदल ; धूप ; दीप ; नैवेद्य ; फल ; ताम्बूल ; दक्षिणा आदि समर्पित करके प्रार्थना करे।फिर पुष्पाञ्जलि ;  आरती आदि करके " ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय " मन्त्र का जप करे।
माहात्म्य ---  सामान्य एकादशियों की अपेक्षा इस एकादशी का विशेष महत्त्व है।यह सौ करोड़ तीर्थों से भी अधिक महत्त्वशालिनी मानी गयी है।इसका व्रत करने से सम्पूर्ण पापराशि का शमन एवं सभी दुःखों का विनाश हो जाता है।इससे ब्रह्महत्या सदृश घोर पाप भी निर्मूल हो जाते हैं।इस एकादशी की शक्ति करोड़ो यज्ञ ; व्रत ; दान ; जप ; होम आदि से भी अधिक मानी गयी है।यह धर्म ; अर्थ ; काम और मोक्ष -- इन चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली है।इसलिए यह एकादशी चाहे जिस मास या पक्ष मे पड़े ; उसका व्रत अवश्य करना चाहिए।यदि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष मे सोमवार या बुधवार को यह एकादशी पड़ जाय तो वह करोड़ो पापों को नष्ट कर देती है।

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