Monday, 12 September 2016

भद्रा व्रत -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           ज्योतिष शास्त्र मे भद्रा एक करण का नाम है।यह प्रायः प्रत्येक तीसरे चौथे दिन आती है।
कथा ---- भद्रा भगवान सूर्य नारायण की पत्नी छाया से उत्पन्न हुई थी।यह शनैश्चर की सगी बहिन थी।इसका स्वरूप बहुत भयानक था।यह जन्म लेते ही शुभ कार्यों मे बाधा डालने लगी।उसकी उच्छृंखलता को देखकर सूर्यदेव ने उसका विवाह करना चाहा।परन्तु कोई भी देवता या असुर उससे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ।सूर्यदेव बहुत चिन्तित थे।उसी समय ब्रह्मा जी आये और सूर्य से भद्रा के उपद्रवों की चर्चा करने लगे।सूर्यदेव ने उनसे निवेदन किया कि अब आप ही इसे समझाने का प्रयास कीजिए।ब्रह्मा जी ने भद्रा को बुलाकर समझाया कि तुम वव ; बालव ; कौलव आदि करणों के अन्त मे निवास करो।जो व्यक्ति तुम्हारे समय मे कोई सामाजिक ; आर्थिक ; मांगलिक आदि  कार्य करे ; उन्हीं मे तुम विघ्न डालो।शेष समय मे बाधक मत बनो।जो व्यक्ति तुम्हारी पूजा करे ; उसका कल्याण करो।जो तुम्हारा आदर न करे ; उसके कार्य को ध्वस्त कर दो।भद्रा ने ब्रह्मा जी की बात मान ली।अतः उसी की अनुकूलता के लिए यह व्रत किया जाता है।
विधि ---- जिस दिन भद्रा हो उस दिन उपवास करना चाहिए।यदि रात्रि मे भद्रा हो तो दो दिन तक एकभुक्त व्रत करना चाहिए।एक प्रहर के बाद भद्रा हो तो तीन प्रहर तक उपवास अथवा एकभुक्त व्रत करना चाहिए।व्रती को चाहिए कि वह सुगन्ध आमलक लगाकर सर्वौषधि युक्त जल से स्नान करे अथवा नदी मे स्नान करे।तर्पण पूजन आदि के बाद कुश से भद्रा की मूर्ति बनाकर उसका विधिवत् पूजन करे।भद्रा के बारह नामों -- धन्या ; दधिमुखी ; भद्रा ; महामारी ; खरानना ; कालरात्रि ; महारुद्रा ; विष्टि ; कुलपुत्रिका ; भैरवी ; महाकाली और असुर- क्षयकारी से एक 108 बार हवन करे।बाद मे ब्राह्मणों को तिल मिश्रित पायस का भोजन कराकर स्वयं भी तिल मिश्रित कृशरान्न का भोजन करे।पूजनोपरान्त प्रार्थना करे --
   छायासूर्यसुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनि।
   पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्रप्रदा भव।।
         इस प्रकार सत्रह बार व्रत करके उद्यापन करे।उसमे लोहे की पीठ पर भद्रा की मूर्ति स्थापित कर काला वस्त्र पहना कर गन्ध पुष्प आदि से पूजन कर प्रार्थना करे।लोहा तेल तिल बछड़ा सहित काली गाय काला कम्बल दक्षिणा प्रदान कर ब्राह्मण को सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य --- जो भद्रा व्रत करता है उसके किसी भी कार्य मे विघ्न नही आता।उसे भूत प्रेत पिशाच आदि का भय एवं कष्ट नही होता है।उसे इष्ट वियोग भी नहीं होता है।

No comments:

Post a Comment