Monday, 12 September 2016

देवपूजन की विशिष्ट तिथियाँ -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          पुराणों मे विविध देवी-देवताओं से सम्बन्धित व्रतों की भाँति उनका पूजन करने की विशिष्ट तिथियों एवं अवसरों का भी उल्लेख हुआ है।यहाँ कुछ प्रमुख देवताओं से सम्बन्धित विशिष्ट तिथियों का उल्लेख किया जा रहा है।
गणेश-पूजन ----
          विघ्नविनायक भगवान गणेश जी प्रथम पूज्य हैं।इनके नित्य-पूजन का विधान है।परन्तु कुछ विशिष्ट तिथियों पर इनका पूजन करने से विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है।शिवपुराण के अनुसार शुक्रवार को ; श्रावण एवं भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तथा पौष मास मे शतभिषा नक्षत्र आने पर इनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए।इससे विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
          यदि प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान महा गणपति का पूजन किया जाय तो उस पक्ष के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।साथ ही भक्त को सम्पूर्ण पक्ष भर उत्तम भोग रूपी फल की प्राप्ति होती है।इसी प्रकार चैत्र मास की चतुर्थी को इनका पूजन करने से एक मास तक किये गये पूजन का फल प्राप्त होता है।सूर्यदेव जब सिंह राशि मे हों तब भाद्रपद मास की चतुर्थी को गणेश-पूजन करने से एक वर्ष तक मनोवाँछित भोगों की प्राप्ति होती है।
          कृत्तिका नक्षत्र से युक्त शुक्रवार को गजानन गणेश जी का पूजन करने तथा गन्ध ; पुष्प ; अन्न आदि का दान करने से मनुष्य के सभी भोग्य-पदार्थों की वृद्धि होती है।यदि उस दिन सुवर्ण ; रजत आदि का दान किया जाय तो बन्ध्या स्त्री को भी उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है।अतः सभी आस्तिक व्यक्तियों को इन अवसरों का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
शिव-पूजन ---
          शिव जी देवाधिदेव हैं।इनका भी दैनिक पूजन का विधान है।फिर भी कुछ विशिष्ट अवसरों पर की गयी पूजा विशेष फलप्रदा कही गयी है।यदि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रविवार पड़ जाय तो उस दिन शिव-पूजन का माहात्म्य और अधिक बढ़ जाता है।यदि उस दिन आर्द्रा या महार्द्रा ( सूर्य संक्रान्ति से युक्त आर्द्रा नक्षत्र ) का योग हो तब शिव-पूजन का विशेष महत्त्व होता है।इसी प्रकार माघ ( फाल्गुन ) मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी  को शिव जी की पूजा करने से मनुष्य के सभी अभीष्टों की पूर्ति हो जाती है।इस पूजन के फलस्वरूप भक्त को दीर्घायु की प्राप्ति एवं अपमृत्यु का निवारण हो जाता है।उसे समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
         इसी प्रकार ज्येष्ठ मास की चतुर्दशी को यदि महार्द्रा का योग हो तो भी शिव-पूजा विशेष पुण्यदायिनी होती है।मार्गशीर्ष मास मे किसी भी तिथि को आर्द्रा नक्षत्र हो तो भी शिव-पूजन का विशेष महत्त्व है।इससे मनुष्य को भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति हो जाती है।शिव-पूजन के लिए कार्तिक मास भी बहुत उपयुक्त माना गया है।इस महीने मे केवल शिव जी ही नहीं ; अपितु सभी देवताओं का पूजन ; दान ; जप ; तप ; होम आदि विशेष फलदायक होते हैं।पूजन के बाद ब्राह्मण-भोजन भी आवश्यक होता है।इसके बिना पूजन की सम्पूर्ति नहीं होती है।कार्तिक मास मे देवताओं का यजन-पूजन करने से समस्त भोगों की प्राप्ति हो जाती है।इससे समस्त व्याधियाँ शान्त हो जाती हैं और भूत एवं ग्रहजन्य सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
          यदि कृत्तिका नक्षत्र से युक्त सोमवार को शिव-पूजन किया जाय तो मनुष्य की दरिद्रता का विनाश एवं सम्पूर्ण सम्पत्तियों की प्राप्ति हो जाती है।यदि गृहस्थी की समस्त उपयोगी सामग्री सहित गृह एवं क्षेत्र का दान किया जाय तो भी उपर्युक्त फल होता है।धनु की संक्रान्ति से युक्त पौष मास मे उषःकाल मे शिव आदि सभी देवताओं का पूजन करने से क्रमशः सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।इस पूजन मे अगहनी चावल से निर्मित नैवेद्य उत्तम माना गया है।

No comments:

Post a Comment