किसी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के आदि से लेकर अग्रिम अमावस्या के अन्त तक यदि स्पष्ट सूर्य की संक्रान्ति न हो तो उसे अधिमास कहा जाता है।यदि उसी बीच स्पष्ट सूर्य की दो बार संक्रान्ति हो जाय तो उसे क्षय मास कहते हैं।अधिमास को अधिक मास ; मलमास ; मलिम्लुच मास ; पुरुषोत्तम मास आदि भी कहा जाता है।यह अधिमास मध्यम मान से बत्तीस महीने ; सोलह दिन और चार घटी ( एक घण्टा छत्तीस मिनट ) के अन्तर पर आता है।परन्तु स्पष्ट मान के अनुसार सत्ताईस महीने से छत्तीस महीने के मध्य आता है।
विधि ---- व्रती को अपनी सामर्थ्य के अनुसार अधिमास भर अर्थात् एक महीने तक उपवास ; नक्त अथवा एकभुक्त व्रत करना चाहिए।यदि इतनी सामर्थ्य न हो तो केवल एक ही दिन श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत करे।इसके लिए व्रती प्रातःकाल स्नानादि करके कलशस्थापन पूर्वक लक्ष्मी जी एवं भगवान नारायण की मूर्ति स्थापित करे।उनका षोडशोपचार पूजन करके प्रार्थना करे।यदि व्यवस्था बन सके तो भगवान को विविध प्रकार के ऋतु फल समर्पित करे।बाद मे अपनी सामर्थ्य के अनुसार अन्न ; वस्त्र ; आभूषण आदि का दान करे।
स्नान ----- अधिमास मे गंगा आदि पवित्र नदियों मे स्नान का बहुत अधिक महत्त्व है।यदि सुविधा न हो तो कहीं पर भी इन पवित्र नदियों का स्मरण करके स्नान अवश्य करे।
माहात्म्य ----- अधिमास व्रत का बहुत अधिक महत्त्व है।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।वह जीवन पर्यन्त सुखी रहते हुए अन्त मे सूर्यलोक को प्राप्त होता है।
Wednesday, 7 September 2016
अधिमास व्रत --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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