Thursday, 8 September 2016

योग व्रत --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         प्रत्येक महीने मे विष्कुम्भ आदि जो सत्ताईस योग होते हैं ; उन योगों के दिन जो व्रत किया जाता है ; उसे योग व्रत कहा जाता है।
कथा ---- इस व्रत का वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था।
विधि ----- व्रती प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर योगव्रत का संकल्प ले।इसमे नक्त व्रत किया जाता है।फिर जिस योग का व्रत करना हो उसी योग से सम्बन्धित वस्तु का दान करे।
         विष्कुम्भ योग मे घृत का ; प्रीतियोग मे तैल का ; आयुष्मान् मे फल का ; सौभाग्य मे ईख का ; शोभन मे जौ का ; अतिगंड मे गेहूँ का ; सुकर्मा मे चने का ; धृति मे सेम का ; शूलयोग मे शालि चावल का ; गंड मे नमक का ; वृद्धि मे दही का ; ध्रुव मे दूध का ; व्याघात मे वस्त्र का ; हर्षण मे सुवर्ण का ; वज्र मे कंबल का ; सिद्धि मे गौ का ; व्यतिपात् मे बैल का ; वरीयान् मे छतरी का ; परिघ मे जूते का ; शिवयोग मे कपूर का ; सिद्धि मे कुंकुम का ; साध्य मे चन्दन का ; शुभ मे पुष्प का ; शुक्ल मे लोहे का ; ब्रह्म मे ताम्र का ; ऐन्द्र मे कांस्य का और वैधृति मे चाँदी का दान करने का विधान है।
माहात्म्य ----- इस व्रत को करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।उसे जीवन मे कभी इष्टवियोग जन्य कष्ट नहीं होता है।

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