Saturday, 10 September 2016

प्रकीर्ण व्रत -- 7

सौख्य व्रत --
          यह व्रत पहले माघ मास मे फिर दुबारा चैत्र मास मे किया जाता है।अतः व्रती माघ मास की अष्टमी को प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प करे।फिर अष्टमी ; एकादशी और चतुर्दशी को एकभुक्त व्रत करे।साथ ही वस्त्र ; जूते ; कंबल आदि शीत-निवारक वस्तुओं का दान करे।इसके बाद चैत्र मास मे भी इन्हीं तिथियों मे एकभुक्त व्रत करके छाता ; पंखा आदि उष्णनिवारक वस्तुओं का दान करे।ऐसा करने से व्रती को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।
विश्वव्रत --
        यह व्रत एक वर्ष तक दशमी तिथि को किया जाता है।अतः जब व्रत करना हो तब दशमी को प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।उस दिन एकभुक्त व्रत करे।अन्त मे स्त्री के रूप मे पूर्व आदि दस दिशाओं की स्वर्ण प्रतिमा को तिलों के ढेर पर स्थापित करे।उनका विधिवत् पूजन करे।फिर गाय सहित उन्हें ब्राह्मण को दान कर दे।यह व्रत बहुत महत्त्वपूर्ण एवं पुण्यदायक है।इस व्रत को करने से महापातक भी दूर हो जाते हैं।साथ ही व्रती को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधिपत्य प्राप्त हो जाता है।
धान्य व्रत ---
        यह भी सूर्यदेव की अनुकम्पा प्राप्त करने का महनीय व्रत है।यह व्रत शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है।अतः जब व्रत करने की इच्छा हो तब किसी शुक्ल पक्षीय सप्तमी को प्रातः स्नानोपरान्त व्रत का संकल्प ले।फिर सूर्यदेव का विधिवत् पूजन करे।ब्राह्मण को नमक सहित सप्तधान्य का दान करे।उस दिन नक्त व्रत करे।इस व्रत को करने से व्रती के सात कुलों का उद्धार हो जाता है।
भीम व्रत ----
        यह व्रत एक मास का होता है।इस व्रत को जब करने की इच्छा हो तो तब प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।पूरे एक मास तक उपवास करे।व्रतान्त मे ब्राह्मण को गोदान करे।यह व्रत बहुत कष्टसाध्य है।परन्तु बहुत पुण्यदायक है।इस व्रत के प्रभाव से व्रती सुखमय जीवन व्यतीत करने के पश्चात् विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
उमा व्रत ---
        मातेश्वरी उमा जी को प्रसन्न करने वाले व्रतों मे उमा व्रत का महत्त्व पूर्ण स्थान है।यह व्रत माघ अथवा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है।अतः व्रती उक्त तिथि को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत के संकल्प ले।इस दिन केवल गुड़ का आहार ले।उसके बाद ब्राह्मण को सभी उपस्करों सहित गुड़धेनु का दान करे।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद गौरीलोक मे निवास करता है।
प्राप्ति व्रत ---
        शिव जी को सन्तुष्ट करने वाले व्रतों मे प्राप्ति व्रत का महत्त्व पूर्ण स्थान है।इस व्रत को एक वर्ष तक किया जाता है।जब भी व्रत करने की इच्छा हो तब प्रातः स्नानोपरान्त व्रत का संकल्प ले।फिर एक वर्ष तक एक ही अन्न का भोजन करे।व्रतान्त मे भक्षणीय पदार्थ सहित जलपूर्ण घट का दान करे।इस प्रकार व्रत करने से मनुष्य एक कल्प तक शिवलोक मे निवास करने का सौभाग्य प्राप्त करता है।
रुद्र व्रत ---
        इस व्रत का आरम्भ कार्तिक मास मे किया जाता है।अतः व्रती कार्तिक मास की तृतीया तिथि को प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास करे।रात्रि के समय गोमूत्र मे पकायी गयी लपसी का प्राशन करे।इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक तृतीया को करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती सुखमय जीवन व्यतीत कर अन्त मे गौरीलोक मे जाता है और वहाँ एक कल्प तक सानन्द निवास करता है।
आग्नेय व्रत ---
        यह व्रत नवमी तिथि को किया जाता है।अतः व्रती किसी शुभ नवमी को प्रातः स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।माता विन्ध्यवासिनी का पूजन एवं नक्त व्रत करे।बाद मे ब्राह्मण को स्वर्ण निर्मित शुक का दान करे।जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ इस व्रत को करता है ; उसे उत्तम वाणी की प्राप्ति होती है।वह सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद अन्त मे अग्निलोक मे निवास करने का सौभाग्य प्राप्त करता है।

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