कान्ति व्रत -----
भगवान विष्णु को सन्तुष्ट कर उनकी अनुकम्पा प्राप्त करने के उपायों मे कान्ति व्रत का प्रमुख स्थान है।यह व्रत वैशाख मास मे किया जाता है।इसमे व्रती प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर विष्णु स्मरण पूर्वक पूरे वैशाख मास भर नमक का परित्याग करे।व्रत के अन्त मे ब्राह्मण को पूजन पूर्वक सवत्सा गौ का दान करे।इस व्रत को करने से मनुष्य की कीर्ति एवं कान्ति की वृद्धि होती है।वह सानन्द जीवन यापन करने के बाद अन्त मे विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
कल्प व्रत -----
यह भी बहुत महत्त्व पूर्ण व्रत है।व्रती किसी शुभ दिन मे प्रातः स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।इसमे तीन दिन तक दुग्ध का आहार लिया जाता है।उसके बाद एक पल से अधिक भार का स्वर्ण का कल्पवृक्ष बनवा कर चावलों के ढेर पर स्थापित करें।उसे पुष्प मालाओं एवं वस्त्र से ढँक दें।उसी स्थान पर एक सवत्सा ( बछड़ा सहित ) गौ भी खड़ी कर पूजन करें।फिर गौ सहित सभी सामग्री ब्राह्मण को दान कर दें।इस व्रत के पुण्य-स्वरूप व्रती कल्प भर समय तक स्वर्ग मे निवास करने का सौभाग्य प्राप्त करता है।
सुगति व्रत -----
गोदान सम्बन्धी व्रतों मे सुगति व्रत का महत्त्व पूर्ण स्थान है।यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है।व्रती किसी शुभ अष्टमी तिथि को प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर दिन भर उपवास करे।व्रत के अन्त मे ब्राह्मण को पयस्विनी गौ का दान करे।उसके बाद रात्रि मे एक बार शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती आजीवन सुखी रहता है और अन्त मे इन्द्रलोक को प्राप्त करता है।
विष्णु व्रत ----
यह व्रत चैत्र मास मे किया जाता है।व्रती सर्वप्रथम संकल्प पूर्वक एकादशी का नक्तव्रत करे।फिर चैत्र मास मे चित्रा नक्षत्र मे ब्राह्मण की विधिवत् पूजा कर उन्हें स्वर्ण निर्मित शंख एवं चक्र का दान करे।इस प्रकार यह व्रत पृथक्-पृथक् दो दिनों मे पूर्ण होता है।इस व्रत के पूरभाव से व्रती सुखमय जीवन व्यतीत करने के पश्चात् कल्प भर समय तक विष्णुलोक मे निवास करता है।बाद मे पुण्य क्षीण होने पर पृथ्वी मे जन्म लेकर राजा बनता है।
देवी व्रत ---
भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाले व्रतों मे देवी व्रत का महत्त्व पूर्ण स्थान है।यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है।अतः व्रती किसी शुभ दिन वाली पञ्चमी तिथि को स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।एक वर्ष तक प्रत्येक पञ्चमी को केवल दुग्ध का आहार ग्रहण करे।व्रतान्त मे ब्राह्मण को दो गायों का दान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती एक कल्प तक लक्ष्मीलोक मे सानन्द निवास करने का सौभाग्य प्राप्त करता है।
भानु व्रत ---
भगवान सूर्य नारायण को प्रसन्न करने वाले व्रतों मे भानु व्रत का महत्त्व पूर्ण स्थान है।यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है।अतः व्रती किसी शुभ सप्तमी तिथि को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर नियम पूर्वक एक वर्ष तक प्रत्येक सप्तमी को नक्त व्रत करे।वर्ष भर बाद उद्यापन करे।उस समय ब्राह्मण को पयस्विनी गौ का दान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती सानन्द जीवन व्यतीत करने के बाद सूर्यलोक को प्राप्त करता है।
सौर व्रत ----
यह भी भगवान सूर्य नारायण से सम्बन्धित व्रत है।इसे भी एक वर्ष तक किया जाता है।इसमे व्रती किसी शुभ सप्तमी को प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास करे।इसी प्रकार एक वर्ष तक सप्तमी व्रत करे।फिर वर्षान्त मे किसी पौराणिक ब्राह्मण को स्वर्ण निर्मित कमल ; कांस्य की दोहनी तथा बछड़ा सहित गौ का दान करे।यह बहुत प्रभावशाली व्रत है।इसे करने से व्रती को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
गोविन्द व्रत ---
भगवान विष्णु से सम्बन्धित व्रतों मे गोविन्द व्रत बहुत महत्त्व पूर्ण एवं पुण्यदायक है।भगवान गोविन्द को द्वादशी तिथि बहुत प्रिय है।अतः व्रती किसी शुभ द्वादशी को व्रत का संकल्प ले।फिर बारह द्वादशियों को विष्णु पूजन पूर्वक उपवास करे।व्रतान्त मे अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र सहित जलपूर्ण बारह घट ब्राह्मणों को दान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।वह भगवान गोविन्द का पद प्राप्त कर लेता है।
Saturday, 10 September 2016
प्रकीर्ण व्रत --5
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