Friday, 2 September 2016

पक्षवर्धिनी एकादशी --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           किसी भी मास मे अमावस्या या पूर्णिमा जब एक सूर्योदय के पूर्व से आरम्भ होकर दूसरे दिन के सूर्योदय के बाद तक विद्यमान रहे ; उसके बाद प्रतिपदा लगे ; तब उसे पक्षवर्धिनी कहा जाता है।उस पक्ष की एकादशी को भी पक्षवर्धिनी एकादशी कहा जाता है।
कथा --- इस एकादशी का वर्णन भगवान महादेव शिव जी ने देवर्षि नारद से किया था।महर्षि वसिष्ठ ; भरद्वाज आदि ने इसी  एकादशी का व्रत करके महान् पद एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त किया था।
विधि ---- व्रती प्रातः स्नानादि नित्यकर्म करने के बाद व्रत का संकल्प ले।फिर कलश-स्थापन पूर्वक भगवान लक्ष्मीपति की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करे।यह एकादशी जिस महीने मे पड़ती है ; उसी के आधार पर उस प्रतिमा का नाम होता है।सर्वप्रथम भगवान को विधिवत् स्नान करायें फिर वस्त्रोपवस्त्र ; यज्ञोपवीत ; चन्दन ; पुष्प आदि से विधिवत् पूजन करें।उसके बाद प्रार्थना ; पुष्पाञ्जलि ; आरती आदि करके द्वादशाक्षर मन्त्र ( ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ) का जप करना चाहिए।दिन भर उपवास के बाद रात्रि मे जागरण करें।
माहात्म्य ---- यह एकादशी अत्यन्त महत्त्व पूर्ण मानी गयी है।यह दस हजार अश्वमेध यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्रदान करने वाली है।यह परम पुण्यमयी एवं प्रबल पापनाशिनी है।शास्त्रों मे इसे काशी ; द्वारका आदि तीर्थों के समान पवित्र एवं पुण्यफल-दायिनी बताया गया है।यह अपने उपासकों को मनोवाँछित फल प्रदान करती है।जिस प्रकार सूर्योदय होते ही अन्धकार समूह नष्ट हो जाता है ; उसी प्रकार इस एकादशी का व्रत करते ही सम्पूर्ण पापराशि नष्ट हो जाती है।यह तिथि भगवान विष्णु जी को बहुत प्रिय है।इसलिए वे अपने व्रतियों की समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।अतः समस्त आस्तिक व्यक्तियों को चाहिए कि वे इस एकादशी का लाभ अवश्य उठायें।

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