Wednesday, 7 September 2016

नक्षत्र व्रत --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           अश्विनी आदि सत्ताईस नक्षत्रों एवं उनके अधिष्ठातृ देवों के व्रत को नक्षत्र-व्रत कहा जाता है।
विधि ----- व्रती जिस नक्षत्र का व्रत करना चाहता हो ; उस नक्षत्र के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर उसके अधिष्ठातृ देव का विधिवत् पूजन करे।उसके बाद एकभुक्त या नक्त व्रत करे।
           इस व्रत मे अश्विनी नक्षत्र मे अश्विनी कुमारों का ; भरणी मे यमराज का ; कृत्तिका मे अग्निदेव का ; रोहिणी मे ब्रह्मा का ; मृगशिरा मे चन्द्रमा का ; आर्द्रा मे शिव जी का ; पुनर्वसु मे अदिति का ; पुष्य मे बृहस्पति का ; आश्लेषा मे सर्प का ; मघा मे पितरों का ; पूर्वाफाल्गुनी मे भग का ; उत्तराफाल्गुनी मे अर्यमा का ; हस्त मे सूर्य का ; चित्रा मे त्वष्टा अर्थात् इन्द्र का ; स्वाती मे वायु का ; विशाखा मे इन्द्र और अग्नि का ; अनुराधा मे मित्र का ; ज्येष्ठा मे इन्द्र का ; मूल मे राक्षसों का ; पूर्वाषाढ़ा मे जल का ; उत्तराषाढ़ा मे विश्वेदेवों का ; श्रवण मे विष्णु का ; धनिष्ठा मे वसु का ; शतभिषा मे वरुण का ; पूर्वाभाद्रपद मे अजैकपाद का ; उत्तराभाद्रपद मे अहिर्बुध्न्य का और रेवती मे पूषा का पूजन करना चाहिए।
माहात्म्य ----- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को धन-धान्य ; पुत्र-पौत्र ; स्त्री ; मान-सम्मान ; आरोग्य ; आयुवृद्धि आदि का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।

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