तिथि और नक्षत्र के योग से बनने वाली एकादशियों मे जयन्ती एकादशी का भी महत्त्व पूर्ण स्थान है।किसी मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को जब रोहिणी नक्षत्र विद्यमान रहता है ; तब उसे जयन्ती तिथि कहा जाता है।
कथा --- उपर्युक्त जया आदि एकादशियों का वर्णन करते समय भगवान महादेव ने देवर्षि नारद के समक्ष जयन्ती एकादशी के विषय मे भी चर्चा की थी।इसलिए यह एकादशी भी अत्यन्त महत्त्व पूर्ण एवं करणीय है।
विधि --- इसमे भी अन्य एकादशियों की भाँति नियम संयम का पालन करते हुए व्रत एवं विष्णु-पूजन का विधान है।विधि-विधान मे श्रद्धा भक्ति आदि का महत्त्व तो सर्वत्र है।
माहात्म्य --- यह भी बहुत महत्त्व पूर्ण व्रत है।यह तिथि सर्व पापापहारिणी मानी गयी है।इसके प्रभाव से सभी प्रकार के पाप शीघ्रातिशीघ्र नष्ट हो जाते हैं और व्रती पूर्ण निष्कलुष हो जाता है।इस दिन पूजन करने से भगवान विष्णु जी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को पूर्ण निष्कलुष बनाकर उसकी समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।अतः समय और सुविधा उपलब्ध होने पर इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
Saturday, 3 September 2016
जयन्ती एकादशी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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