इसमे मेषादि द्वादश राशियों का पूजन एवं तन्निमित्तक व्रत होने के कारण इसे राशि-व्रत कहा जाता है।
कथा --- इस व्रत का वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था।
विधि ---- इसमे कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ कर आश्विन मास की पूर्णिमा तक बारह पूर्णिमाओं मे क्रमशः मेष ; वृष ; मिथुन ; कर्क ; सिंह ; कन्या ; तुला ; वृश्चिक ; धनु ; मकर ; कुम्भ और मीन राशियों की स्वर्ण प्रतिमाओं को पुष्प ; वस्त्र ; आभूषण आदि से अलंकृत करके पूजन किया जाता है।फिर दक्षिणा सहित मूर्ति को दान कर देना चाहिए।
माहात्म्य ---- इस व्रत को करने से मनुष्य के जीवन के सभी उपद्रव शान्त हो जाते हैं।उसकी सभी आशायें और कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह पूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद सोमलोक को प्राप्त होता है।
Wednesday, 7 September 2016
राशि-व्रत --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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