Saturday, 10 September 2016

प्रकीर्ण व्रत -- 6

ऋषि व्रत ---
          यह व्रत भी बहुत महत्त्व पूर्ण एवं पुण्यदायक है।इसमे एक वर्ष तक तृतीया को व्रत किया जाता है।अतः शुभ मास दिन आदि मे इस व्रत को आरम्भ करना चाहिए।व्रती जब व्रत करना चाहे ; तब  तृतीया को प्रातः स्नानादि क्रियाओं के बाद  व्रत का संकल्प ले।उस दिन बिना पकाया अन्न ; फल आदि का आहार ग्रहण करे।इसी प्रकार वर्ष भर प्रत्येक तृतीया को करे।वर्षान्त मे उद्यापन करे।उद्यापन के दिन ब्राह्मण को गोदान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती यावज्जीवन सुखी रहता है और अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करता है।
भवानी व्रत ----
         जगदम्बा भवानी को सन्तुष्ट करने वाले सरलतम व्रतों मे भवानी व्रत का स्थान सर्वोपरि है।इसमे व्रती किसी शुभ तृतीया को व्रत का संकल्प ले।फिर एक वर्ष तक प्रत्येक तृतीया तिथि को  शिवालय मे उपलेपन अर्थात् झाड़ू आदि लगा कर गोबर से लिपाई करे।फिर वर्ष के अन्त मे गोदान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद स्वर्गलोक को प्राप्त करता है।
तापन व्रत ----
      यह व्रत माघ मास की सप्तमी तिथि को किया जाता है।पहले प्रातः स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प ले।फिर दिन भर उपवास करे।रात्रि मे भगवन्नाम-स्मरण पूर्वक भीगे वस्त्रों को धारण किये रहे।अन्त मे ब्राह्मण को गोदान करे।यह व्रत भी बहुत महत्त्व पूर्ण है।इसको करने से व्रती सुखमय जीवन बिताने के बाद अन्त मे कल्प भर के लिए स्वर्ग मे निवास करने का सौभाग्य प्राप्त करता है।
धाम व्रत ---
        यह व्रत बहुत कष्ट साध्य एवं व्यय साध्य है ; परन्तु बहुत पुण्यदायक है।इसमे किसी शुभ दिन मे व्रती स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प ले।फिर तीन रात्रि तक उपवास करे।उसके बाद फाल्गुन पूर्णिमा को गृहदान करे।अतः इसे फाल्गुन पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व आरम्भ करना चाहिए।इस व्रत को करने से व्रती को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
इन्दु व्रत ---
           यह व्रत पूर्णिमा तिथि को किया जाता है।अतः किसी शुभ पूर्णिमा को प्रातः नित्यकर्म करके व्रत का संकल्प ले।पूरा दिन उपवास करे।तीनो सन्ध्याओं अर्थात् प्रातः ; मध्याह्न और सायंकाल के समय वस्त्र ; आभूषण ; भोजन ; दक्षिणा आदि देकर सपत्नीक ब्राह्मण का पूजन करे।इस प्रकार यह व्रत पूर्ण होता है।इसको करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सोम व्रत ---
           यह व्रत एक वर्ष तक प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को किया जाता है।व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर ब्राह्मण को नमक से भरा हुआ कांस्य पात्र ; वस्त्र ; दक्षिणा आदि प्रदान करे।इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक शुक्ल पक्षीय द्वितीया को करना चाहिए।वर्षान्त मे शिवालय मे गोदान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती को कल्प भर तक शिवलोक मे निवास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।बाद मे पुण्य क्षीण होने पर वह पृथ्वी पर जन्म लेकर राजाधिराज बनता है।
आग्नेय व्रत --
        यह व्रत प्रत्येक मास की प्रतिपदा तिथि को किया जाता है।अतः व्रती किसी शुभ मास मे प्रतिपदा को स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर प्रत्येक प्रतिपदा को एक समय शुद्ध सात्विक भोजन करे।व्रतान्त मे ब्राह्मण को कपिला गौ का दान करे।इस प्रकार एक वर्ष मे यह व्रत पूर्ण होता है।इस व्रत के प्रभाव से व्रती को अग्निलोक की प्राप्ति होती है।
    

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