Tuesday, 13 September 2016

भगवत्स्मरण -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुख ; शान्ति ; समृद्धि ; सन्तति ; मोक्ष आदि प्राप्त करना चाहता है।इन्हें प्राप्त करने के जितने भी साधन बताये गये हैं ; उनमे व्रत ; पूजा ; पाठ ; साधना ; प्रार्थना आदि के साथ भगवत्स्मरण को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है।यह सबसे सरल एवं सुलभ साधन है।इसके द्वारा मनुष्य को वे सभी वस्तुयें प्राप्त हो जाती हैं ; जिनकी उसे आवश्यकता होती है।
           भगवत्स्मरण मे भावना एवं लालसा का महत्त्व सर्वाधिक होता है।जब पूर्ण मनोयोग एवं सद्भावना के साथ स्मरण किया जायेगा ; तब सफलता अवश्य मिलेगी।इसीलिए यह कहा गया है कि जिस प्रकार प्यासा व्यक्ति व्याकुलता पूर्वक पानी का स्मरण करता है और उसे अविलम्ब प्राप्त करना चाहता है ; उसी प्रकार भक्त को भी आकुलता पूर्वक भगवान का स्मरण करना चाहिए।जिस प्रकार पतिव्रता नारी पति के लिए ; भयातुर व्यक्ति निर्भयाश्रय के लिए ; धनार्थी धन के लिए और पुत्रार्थी पुत्र-प्राप्ति के लिए लालायित रहता है ; उसी प्रकार भक्त को भी भगवत्स्मरण के लिए लालायित रहना चाहिए।जिस प्रकार हंस मानसरोवर को ; ऋषिगण भगवान के स्मरण को ; वैष्णव जन भक्ति को ; पशु हरी-भरी घास को और साधु पुरुष धर्म को चाहते हैं ; उसी प्रकार भक्त को भी भगवान का चिन्तन करना चाहिए।जिस प्रकार प्राणी दीर्घायु की ; भ्रमर पुष्प की ; चक्रवाक सूर्य की  और प्रेमी जन भक्ति की अभिलाषा रखते हैं ; उसी प्रकार भक्त को भगवत्स्मरण की अभिलाषा रखनी चाहिए।जिस प्रकार अन्धकार से घबराया हुआ व्यक्ति प्रकाश की ; थका-माँदा व्यक्ति विश्राम की ; रोगी नींद की और आलस्य रहित व्यक्ति विद्या की लालसा रखता है ; उसी प्रकार भक्त को भी भगवत्स्मरण की लालसा रखनी चाहिए।
          इस प्रकार स्पष्ट है कि भगवत्स्मरण मे अतीव लालसा एवं उत्कण्ठा अपेक्षित है।जिसमे इसकी मात्रा जितनी अधिक होगी ; सफलता उतनी ही सुनिश्चित रहेगी।इसके अभाव मे भी सफलता मिलेगी परन्तु मात्रा कम होगी।अतः पूर्ण मनोयोग से भगवत्स्मरण करने का प्रयास करना चाहिए।

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