शास्त्रों मे असंख्य व्रतों की विवेचना की गयी है।उनमे एकादशी व्रत की विशिष्ट महत्ता है।इस व्रत के लिए अनेक नियम बताये गये हैं।उनका विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने के लिए मूल ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए।यहाँ पर कुछ सामान्य नियमों की ओर संकेत किया जा रहा है -----
1-- एकादशी व्रत प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों मे होता है।
2-- दोनों पक्षों की एकादशियों का महत्त्व एक समान है।किन्तु विशिष्ट योगों पर आधारित त्रिस्पृशा आदि का महत्व बढ़ जाता है।उनकी विवेचना अन्यत्र की गयी है।
3-- कुछ विद्वानों का विचार है कि वानप्रस्थ ; सन्यासी एवं विधवाओं के लिए दोनों पक्षों की एकादशी उत्तम मानी गयी है।पुत्रवान गृहस्थ के लिए केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी उत्तम होती है।परन्तु कूर्म आदि पुराणों के अनुसार विष्णु की सायुज्य मुक्ति ; लक्ष्मी और सन्तान चाहने वाले दोनों पक्षों की एकादशियों को भोजन न करें अर्थात् व्रत करें ---
यदिच्छेद्विष्णुसायुज्यं श्रियं सन्ततिमात्मनः।
एकादश्यां न भुञ्जीत पक्षयोरुभयोरपि।।
4-- एक अन्य स्थल पर भी इसी भाव को अभिव्यक्त करते हुए कहा गया है कि आठ वर्ष की अवस्था से लेकर अस्सी वर्ष की अवस्था तक वालों को दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत करना चाहिए ---
अष्टवर्षाधिको मर्त्यो ह्यशीतिन्यूनवत्सरः।
एकादश्यामुपवसेत्पक्षयोरुभयोरपि।।
5-- एकादशी के दो भेद हैं -- नित्य और काम्य।निष्काम भाव से जो व्रत किया जाता है ; उसे नित्य कहा जाता है।पुत्र-प्राप्ति ; लक्ष्मी प्राप्ति ; रोग निवृत्ति आदि की कामना से जो व्रत किया जाता है ; उसे काम्य एकादशी कहा जाता है।इन दोनों व्रतों के विधि-विधान मे कोई अन्तर नहीं है।दोनो मे संयम नियम देव पूजन आदि एक समान हैं।
6-- एकादशी के दो अन्य भेद भी होते हैं ; जिन्हें विद्धा एवं शुद्धा के नाम से जाना जाता है।जो दशमी तिथि से विद्ध होती है ; उसे विद्धा कहा जाता है।इस वेध के विषय मे शास्त्रों मे विस्तृत चर्चा की गयी है।वहाँ अनेक मत-मतान्तर पाये जाते हैं।जो एकादशी दशमी के वेध से रहित होती है ; उसे शुद्धा एकादशी कहा जाता है।
7-- एकादशी व्रत का आरम्भ चैत्र ; वैशाख ; मार्गशीर्ष और माघ मास मे करना चाहिए।इनमे प्रारम्भ किया गया अधिक शुभदायी होता है।
8-- नित्य एकादशी व्रत का आरम्भ तो कभी भी किया जा सकता है।परन्तु काम्य एकादशी व्रत का आरम्भ सदैव शुद्ध दिनों मे करना चाहिए।इसका आरम्भ गुरु शुक्र के अस्तकाल एवं मलमास मे नहीं करना चाहिए।
9-- एकादशी आने के पूर्व दशमी को ही रात्रि के समय व्रत का संकल्प ले लेना चाहिए।
10-- इस व्रत मे तीन दिनों तक आहार विहार का प्रतिबन्ध होता है।दशमी को केवल हविष्यान्न ( गेहूँ ; जौ ; मूँग ; सेंधा नमक ; काली मिर्च ; शर्करा ; गोघृत आदि ) का एक बार आहार लें।एकादशी को नियमानुसार व्रत करें।द्वादशी को पुनः एक बार हविष्यान्न ही लेना चाहिए।
11-- इस व्रत मे दशमी से लेकर द्वादशी तक कांस्यपात्र मे भोजन ; मसूर ; चना ; मिथ्याभाषण ; शाक ; मधु ; तेल ; मैथुन ; द्यूत ( जुआ ) ; अधिक पानी पीना आदि वर्जित है।इनका सेवन किसी भी ढंग से नहीं करना चाहिए।एकादशी को तो व्रत के सम्पूर्ण सामान्य नियमों का पालन आवश्यक ही है।
12-- एकादशी व्रत करने वाला व्यक्ति यदि अचानक अस्वस्थ हो जाय अथवा अन्य कोई असमर्थता आ जाय तो एकभक्त ( एक बार सात्विक आहार ) ; नक्त ( रात्रि मे एक बार विहित आहार ) ; अथवा अयाचित व्रत ( बिना माँगे जो मिल जाय ; शुद्ध सात्विक आहार ) करना चाहिए।
13-- यदि व्रती पूर्ण रूपेण असमर्थ हो जाय तो किसी पारिवारिक रक्तसम्बन्धी से व्रत कराना चाहिए ; जिससे व्रत का क्रम भंग न होने पाये।
14-- यद्यपि दिनक्षय ; सूर्य संक्रान्ति और सूर्य-चन्द्र-ग्रहण के समय व्रत करना वर्जित है।परन्तु नित्य एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए।उस दिन फल-मूलादि से परिहार लेने की व्यवस्था है।
15-- यदि एकादशी के दिन माता पिता का नैमित्तिक श्राद्ध आ जाये तब श्राद्ध और व्रत दोनो को करना चाहिए।उस दिन श्राद्ध के भोजन को दाहिने हाथ मे लेकर सूँघ ले फिर उसे गौ को खिला दे।स्वयं उपवास करे।
16-- एकादशी के दूसरे दिन पारणा आवश्यक है।यदि उस दिन द्वादशी बहुत अल्पकाल के लिए हो और तब तक पारणा किया जाना सम्भव न हो तब उषःकाल मे ही पारणा कर लेनी चाहिए।
17-- यदि किसी अपरिहार्य कारणवश विधिवत् पारणा की सुविधा न हो तब केवल जल पीकर पारणा कर लेनी चाहिए।
18-- एकादशी व्रत मे शैव और वैष्णव का भेद नहीं है।इन दोनो सम्प्रदायों के अनुयायियों को एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए।
19-- एकादशी दो प्रकार की होती है।एक वैष्णवों के लिए और दूसरी स्मार्तों के लिए।जिन्होंने विधिवत् वैष्णवी दीक्षा ली हो ; जिन्होंने सम्पूर्ण आचरण विष्णु जी को अर्पण कर दिया हो ; उन्हें वैष्णव कहा जाता है।शेष गृहस्थ स्मार्त कहलाते हैं।पञ्चाङ्गों मे स्पष्ट रूप से लिखा रहता है कि किस दिन वैष्णवों के लिए है और किस दिन स्मार्तों के लिए है।
20-- यदि स्वास्थ्य ठीक रहे तो यावज्जीवन एकादशी व्रत किया जा सकता है।परन्तु विशेष परिस्थिति मे उसका उद्यापन कर देना चाहिए।उद्यापन भी गुरु-शुक्र के अस्तकाल एवं मलमास मे नहीं करना चाहिए।इसके लिए भी समय-शुद्धि आवश्यक है।
21-- शास्त्रीय मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति द्वादशी को तुलसीदल युक्त नैवेद्य का भक्षण करता है ; उसके करोड़ों हत्याओं के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
Saturday, 3 September 2016
एकादशी व्रत के नियम -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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