सनातन परम्परा मे भगवान विश्वकर्मा का बहुत अधिक महत्व है।इन्हें निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है।ये शिल्प विद्या के परमाचार्य थे।इसीलिए इन्हें देव-शिल्पी होने का गौरव प्राप्त है।इनका उल्लेख वैदिक वाङ्मय से लेकर रामायण ; महाभारत ; पुराणों आदि सभी सद् ग्रन्थों मे हुआ है।पौराणिक मान्यता के अनुसार ये महर्षि वसिष्ठ की बहन भुवना के पुत्र थे।इनके पिता का नाम महर्षि प्रभास था।
अतः स्पष्ट है कि विश्वाकर्मा जी सनातन धर्म के देवता थे।इनकी पूजा सदैव 17 सितम्बर को होती है।इसलिए लोगों को भ्रम हो जाता है कि एक सनातन-देवता का सम्बन्ध अंग्रेजी तारीख से क्यों है ? वस्तुतः विश्वकर्मा पूजा तब की जाती है ; जब भगवान सूर्य नारायण कन्या राशि मे प्रवेश करते हैं।ज्योतिषीय गणित के अनुसार सूर्य की कन्या राशि की संक्रान्ति सदैव 17 सितम्बर को ही होती है।जिस प्रकार मकर संक्रान्ति प्रायः 14 जनवरी को और मेष की संक्रान्ति प्रायः 14 अप्रैल को होती है ; उसी प्रकार कन्या की संक्रान्ति भी 17 सितम्बर को पड़ती है।इसीलिए विश्वकर्मा पूजा सदैव 17 सितम्बर को की जाती है।यह तिथि पूर्ण रूपेण भारतीय ज्योतिष की गणित पर आधारित पर्व है।अंग्रेजी तिथि-व्यवस्था से इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है।
Saturday, 17 September 2016
विश्वकर्मा पूजा अंग्रेजी तारीख से क्यों ? -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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